नई दिल्ली. दिल्ली के निजामुद्दीन इलाके में इस्लामिक धार्मिक आयोजन (मरकज) के बाद 1700 से ज्यादा लोग उसी जगह पर ठहरे हुए थे। पिछले तीन दिनों से इन्हें यहां से निकाला जा रहा है। अब तक 1500 से ज्यादा लोगों को डीटीसी बसों के जरिए अलग-अलग हॉस्पिटल्स ले जाया गया है। इनकी जांच की जा रही है। शुरुआती जांच में 441 लोगों में कोरोना के लक्षण पाए गए हैं, हालांकि इनकी फाइनल रिपोर्ट का इंतजार है। रविवार के दिन जिन 200 लोगों को यहां से हॉस्पिटल ले जाया गया था, इनमें से 24 लोग कोरोना पॉजिटिव पाए गए थे।
अभी भी यहां 100 से 200 लोग मौजूद हैं, जिन्हें 32-32 की खेप में बसों के जरिए हॉस्पिटल ले जाया जा रहा है। बसों में इन लोगों को दूर-दूर ही बैठाया जा रहा है। यहां मौजूद प्रशासन, एनडीएमसी और स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों का कहना है कि बस में बैठाए जाने से पहले ही लोगों की स्क्रिनिंग की जा रही है। ऐसे में एक बस को रवाना करने में 40 से 45 मिनट लग रहे हैं।
देश में लॉकडाउन के ऐलान के बाद इस तरह लोगों का इकट्ठा होना अपराध है। लेकिन, मरकज आयोजित करने वाले मस्जिद प्रशासन का कहना है कि उन्होंने किसी तरह के नियमों का उल्लंघन नहीं किया है। इनका कहना है, 'यह आयोजन हर साल एक बार होता है। प्रधानमंत्री मोदी ने जब जनता कर्फ्यू की घोषणा की थी, उसी दिन से मरकज को बंद कर दिया गया, लेकिन ट्रेनें न चलने के कारण मरकज में आए लोग यहीं फंसे रह गए। जनता कर्फ्यू के एक दिन पहले ही रेलवे ने देशभर की कई ट्रेनों को रद्द कर दिया था। 22 तारीख को रात 9 बजे तक कहीं नहीं निकला जा सका। इसी दिन दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने 23 तारीख को सुबह 6 बजे से 31 मार्च राज्य में लॉकडाउन का ऐलान कर दिया और फिर 25 मार्च से पूरे देश को ही लॉकडाउन कर दिया गया। ऐसे में मरकज में आए लोगों कहीं नहीं जा पाए।'
मरकज में 21 मार्च को 1746 लोग थे
गृह मंत्रालय ने बताया कि जनता कर्फ्यू लगने से पहले निजामुद्दीन के मरकज में 21 मार्च को 1746 लोग थे। इनमें 216 विदेशी और 1530 लोग भारतीय थे। विदेश से आने वाले लोगों में इंडोनेशिया, मलेशिया, थाईलैंड, नेपाल, म्यांमार, बांग्लादेश, श्रीलंका और किर्गीस्तान से आए लोग शामिल थे। वहीं 1530 लोगों में भारत के अलग-अलग राज्यों से आए हुए लोग हैं।