मुकेश कुमार
माल-लखनऊ
सरकार जहां करोना महामारी में सभी वर्गों को राहत दे रही है, वहीं प्राथमिक से लेकर इंटर तक के वित्तविहीन शिक्षकों व शिक्षक कर्मचारियों की तरफ से आंख बंद किए हुए हैं, अभी हाल ही में कानून मंत्री ने वकीलों को भी 5,000 आर्थिक सहायता देने की घोषणा की है फिर हमारे मा0 शिक्षामंत्री जी व मा0 उपमुख्यमंत्री व माध्यमिक शिक्षामंत्री को वित्तविहीन शिक्षक व कर्मचारी क्यों नहीं दिखाई दे रहे हैं क्या सरकार चाहती है कि शिक्षक और प्रबंधक आपस में लड़े और सरकार के ऊपर कोई देनदारी ना रहे यानी कि सांप भी मर जाए और लाठी भी ना टूटे| प्रबंधक वेतन दे रहे थे या नहीं दे रहे थे इसका पता सरकार ने आज तक क्यों नहीं लगा या यदि निजी विद्यालय के प्रबंधक अभी तक वेतन देते आ रहे हैं,तो आगे भी वेतन देते रहेंगे | इसमें सरकार का अभी तक कोई सहयोग नहीं रहा निजी विद्यालयों को सरकार से एक छात्रवृत्ति प्राथमिक व जूनियर के छात्रों को मिलती थी सरकार ने वर्ष 2012-13 से वह भी बंद कर दिया है ।
शहरी क्षेत्र के विद्यालय आर्थिक रूप से सक्षम है क्योंकि आईएससी बोर्ड व सीबीएसई से मान्यता प्राप्त अधिकांश विद्यालय हैं यह विद्यालय अधिकांश ग्रामीण क्षेत्रों में स्थित हैं विद्यालय में गरीब किसान और मजदूर के बच्चे पढ़ते हैं,जो हर महीने कमाते हैं और अपने बच्चो की फीस जमा करते हैं इसमें लेटलतीफी भी होती है लेकिन उनके भरोसे ही विद्यालय चलाना रहता है,तब विद्यालय उनको छूट प्रदान करें और सरकारी सहयोग भी दे सरकार के अधिकारियों द्वारा 3 महीने फीस न लेने का आदेश पालन इन्हीं ग्रामीण कस्बे के विद्यालयों में होगा क्योंकि वहां पढ़ने वाले छात्रों के अभिभावक कभी भी ऑनलाइन माध्यम से फीस नहीं जमा किए हुए हैं। विद्यालय फीस प्राप्त करता है, उसी से वेतन देता और अपने विद्यालय के भवन व विद्यालय की गतिविधियां संचालित करता है। वह गाड़ी की किस्ते भी भरता है व ट्रांसपोर्ट के साधनों की व्यवस्था भी करता हैं,वित्तविहीन शिक्षकों को आर्थिक राहत प्रदान करने की आवश्यकता है ,शासन द्वारा वित्तविहीन शिक्षकों को राहत मिलनी चाहिए ।
प्रबंधक कभी नहीं लिख कर देंगे कि हम बेतन नहीं दिए है और शिक्षक कभी भी अपने प्रबंधक के खिलाफ नहीं जाएगा क्योंकि उसको इसी विद्यालय से रोजगार प्राप्त होता है,इन बेरोजगार नवयुवकों को यही निजी विद्यालय वेतन व रोजगार प्रदान करते हैं जिनसे इनके घर की आर्थिक गतिविधियां संचालित होती हैं,इसके अलावा विद्यालय के प्रबंधक व शिक्षक एक ही गांव के अगल- बगल के गांव के होते हैं, प्रबंधक की आर्थिक दशा शिक्षक जानते हैं और शिक्षक की आर्थिक दशा प्रबंधक जानते हैं,प्रबंधक अपने शिक्षकों को भुखमरी में नहीं जीने देंगे !अगर इनके पास पैसा होगा तो जरूर देंगे हम सरकार से "आर्थिक राहत" की मांग करते हैं ना कि वेतन देने की जिस तरह से सरकार समाज के हर वर्ग की मदद कर रही है, उसी तरीके से प्राथमिक/ जूनियर / माध्यमिक स्तर के विद्यालयों को भी सरकार राहत प्रदान करें !
एक तरफ मानवता के आधार पर निजी विद्यालय से सरकार अपील कर रही है तो निजी विद्यालयों को भी सरकार आर्थिक राहत प्रदान करें! अन्यथा यह विद्यालय आर्थिक आधार पर टूट जाएंगे और विद्यालय से जुड़े लाखो प्रबंधक /संचालक /शिक्षक व कर्मचारी बेरोजगार हो जाएंगे तब भी यह जिम्मेदारी रोजगार देने की सरकार की ही होगी ऐसी संकट की घड़ी में विद्यालयों को बचाने का कार्य शासन को करना चाहिए ।सरकार समस्या और जिम्मेदारी से भाग कर अपने अमानवीय कार्य से बच नहीं सकेगी ।
अध्यक्ष:- अभय प्रताप सिंह
विद्यालय प्रबंधक महासंघ- अवध प्रांत (उत्तर प्रदेश)
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