हरिकेश यादव-संवाददाता (इंडेविन टाइम्स)
अमेठी।
० मन को पीड़ा से झकझोर देती है मजदूरों की हृदय विदारक यात्रा
कोविड 19 महामारी से बचाव के लिए सरकारें भले ही लाखों प्रयास कर रही हैं। लेकिन प्रवासी मजदूरों का कुनबा अब महानगरों में रूकने का नाम नहीं ले रहा है। ऐसे में प्रवासी पैदल, साइकिल, बाईक, लग्जरी कारों, ट्रक, बस, रेलगाड़ी से अपने गृह नगर में पहुंचने की होड़ लगी हैं। महानगर सूरत, अहमदाबाद, इन्दौर, हैदराबाद, लुधियाना, चन्डीगढ़, नागपुर, पूना, पूणे, जयपुर, जोधपुर, कोटा, जालंधर, फिरोजपुर, मुम्बई, आदि से प्रवासी पलायन कर रहे हैं।
सड़कों पर वाहनों की संख्या बढ़ रही हैं। जनता जनार्दन को गांव के लोगों से परेशानी कम है। अब गांव के लोगों को प्रवासी मजदूर से ज्यादा लोगो से परेशानी हो रही है। प्रवासी मजदूर राम करन, बिष्णु, राम मिलन यादव, राजेंद्र कुमार कोरी, सन्तराम, सोनू आदि का कहना है कि अब गांव में कन्धे पर बैग देखने के बाद लोग कन्नी काट रहे हैं। लिफ्ट मांगने पर सहयोग करने से दूर भाग रहे हैं। खाना नहीं मिल रहा है। जेब में जब रूपये नहीं होते तो गांव और घर में शरण लेना मजबूरी बन जाती है। लेकिन गाँव के लोग प्रवासी कामगारों को देखने के बाद रूखा ब्यवहार कर रहे हैं। ज्यादातर लोग संवेदनहीन हो गए हैं हम प्रवासी मजदूरों को नल से पानी भी भरने नहीं देते हैं और बेवजह डांट कर भगा देते हैं। यह सब देखने के बाद लोग संयम खो रहे हैं।
हाल चाल पूछने पर प्रवासी कामगारों के आंखों में आंसू आ जाते हैं जो अंतरात्मा को झकझोर देते हैं कि इस महामारी ने मानवता को कैसे शर्मसार कर दिया है। इससे पुरानी परम्पराओं में अब दरार देखने को मिल रही हैं और नई सामाजिक परम्परा को बढ़ावा दिख रहा है। इससे लोग गांव में नयी परेशानी महसूस कर रहे हैं। अपनों से दूरी होने से लोगों को सदमा लग रहा हैं। एकता की श्रृंखला में बाधा उत्पन्न हो रही है। देश के लोगों को इस विषय पर नए सिरे से सोचने की आवश्यकता है कि समाज में कैसे सामाजिक समरसता व सद्भाव की भावना को बढ़ाया जाए जिससे आने वाले समय में लोगों में आपसी भेदभाव की भावना समाप्त किया जा सके।
No comments
Post a Comment