हरिकेश यादव-संवाददाता (इंडेविन टाइम्स)
अमेठी।
जिले में लोग कोरोना वायरस महामारी से ज्यादा पुलिस से परेशान हैं। जिसके कंधों पर सुरक्षा के साथ प्रशासन का भार रहता है। लेकिन इस मामले में प्रशासन और सुरक्षा दोनों में पुलिस आखिरकार क्यों फेल साबित हो रही है। पहली बात मीडिया को प्रतिबंधित रखना पुलिस की आदत सी बन चुकी हैं। लेकिन पुलिस अपनी बात ऊपर पसन्द करतीं हैं ।वहीं मीडिया से इस तरह ब्यवहार करती हैं जैसे अनजान व्यक्ति से मुलाकात हो रही है। पुलिस के स्टेशन अफसर इतना भी मीडिया के प्रति वफादारी नहीं करना पसंद करते हैं। इनके आरक्षी लोगों से बातचीत और ब्यवहार कैसे कर रहे हैं। इसे देखकर अच्छा भला इंसान भी झेप जाता हैं।
वहीं पेड़ कटान वाले, आरा मशीन वाले, ड्रग्स के धन्धे बाजों, अपराधी प्रवृत्ति के लोगों, नेताओं और ब्यवसायी के इर्द-गिर्द रहने वालों को, बस स्टैंड, रेल स्टैंड पर रहने वाले, ट्रांसपोर्ट में दुकानदारों के सामान की आपूर्ति करने वाले, गिट्टी - मोरंग, बालू की ट्रकों की मंडी में बिचौलिए के काम करने वाले की पुलिस के आरक्षी और पुलिस उप निरीक्षक जहाँ देखें वहीं उनसे गप्पे लडाने में गुरेज नहीं करते हैं। नजराने और हिस्से को लेकर खुल्लम खुल्ला बातें करते हैं। ऐसे में खाकी वर्दी को लोग क्या कहेंगे। जबकि 80%लोगों का इस खाकी वर्दी से वास्ता नहीं पड़ता है ।
सीमा जिले की, या कोबिड - 2019 के हाट स्पाट की सीमा हो या और कहीं बातें अच्छी सुनने को नहीं मिलती है। कोरोना वायरस महामारी के दौरान जिनके घर में चोरी, छिनौती, हिंसा और मामले या शिकायतें रहीं हो या जांच में रही। फिर क्या कहना बिना जांच, बिना पूछताछ, बिना छापामारी के कहानी के पट की तरह निपटा दिया। भले ही सिफारिश करवायी न्याय की मांग किया।
प्रधान की फरियाद को ठुकरा दिया। कोरोना वायरस महामारी की आड़ में लोगों की आंखों की आंसू सूख गए हैं। पुलिस उनकी भी नहीं हुई जिनसे हां में हां मिलती हैं। जिले के पुलिस आफिसर भी भले ही भलाई के लिए पहल नहीं की। मीडिया को उठा - बैठक में शामिल किया। जब कुछ ने खबर लगाई तो अफसरो को याद आयी कहीं गले की फांस ना बन जाय। लाक डाउन में मानवाधिकार आयोग ने मौन धारण कर लिया। जैसे मन्दिर, मस्जिद, गुरूद्वारा में ताले लग गये हैं और शादी, मांगलिक, भोज भात में पाबन्दी लगी है उसी तरह वायरस के संक्रमण काल में लोग पुलिस से परेशान हुए।
पुलिस की मानें तो बिना कडाई के कोई सुनता नहीं। शासन-प्रशासन और सरकारें कानून व्यवस्था चाहती हैं। पुलिस की मजबूरी है उसे लोगों को समझाना - बुझना चाहिए। जानें अनजाने में गलती सबसे हो जाती हैं। गलती करने को इंसाफ नहीं मिलता है। सबको आदालत में न्याय के कटघरे में खड़ा होना पड़ता है। सच को एक ना एक दिन सब को कबूल करना पडेगा। ईश्वर और परिवार के आगे सबको शीश झुकाना पड़ता है।