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'भारत एवं कोरोना'- अर्चना मुकेश मेहता

                                                  लेखिका -अर्चना मुकेश मेहता

आज स्थित ये है यदि हम गूगल में क भी टाइप करें तो कोरोना स्वतः ही टपक पड़ता है इस से अनुमान हो जाता है कि कोरोना हमारे कितना अंदर घुस चुका है।  जिस तेज गति से ये भारत में फ़ैल रहा है उतनी ही तेज गति से ये लोगों के दिमाग पर भी असर कर रहा है । 

भारत की जनसंख्या जितनी ज़्यादा है उस से अधिक व्यापक हमारी संस्कृति है जिसकी अवहेलना हमने शुरू कर दी थी  आखिर को हर मोड़ पर पेड़ों की छाया के स्थान पर कब बसों के स्टैंड ने ले ली कब दादी नानी के हाथ के बने लड्डुओं का स्थान मोमोस और चोकोलेट ने ले लिया पता ही नहीं चला, किन्तु प्रकृति चुपचाप अपनी अवहेलना होते हुए देख रही थी बहुत बार इशारा भी मिला प्रकृति से किन्तु भारत तो विकास की होड़ में इतना खो गया था कि उसे कुछ भी दिखना बंद होता जा रहा था, " आखिर को प्रकृति जब कुछ कहती है तो ध्यान से सुनो अन्यथा वो फिर जब सुनाने पे आती है फिर किसी कि नहीं सुनती।"

भारत इतना मस्त हो गया इस दौड़ में कि बच्चों को क्या खाना चाहिए और कितनी मात्रा में यह भी भूल गया, इतना अपमान अपनी संस्कृति का?पेड़ों एवं भोजन को ईश्वर मानने वाला भारतीय कब इस दौड़ में बेईमानी एवं मक्कारी के दलदलद में जा फंसा पता तब चला जब ये माहमारी ने अपना रूप दिखाया।  आज अच्छे से अच्छे डॉक्टर को सलाह देते सुनती हूँ कि " योग करो , गर्म पानी पियो गर्म खाना खाओ , काढ़ा पियो।  

यदि आप पुरातत्व काल खोजें या दादी नानी के खजाने को पढ़ें खंगालें तो आपको ये सारी बातें पढ़ने को मिल जाएँगी। कोरोना आया तो इसलिए ही कि वो फिर से हमको उस जीवन कि तरफ पुनः ले जाए जो स्वस्थ जीवन शैली और प्रकृति से जुड़ाव रखती है। आज भी मेरे जैसी कई माएँ संघर्ष कर रही हैं कि वो अपने बच्चों को उस जीवन शैली से परिचित कराएं जिसमें वो खुद पली बढ़ीं हैं। 

आज हम सबकी यही ज़िम्मेदारी है कि हम अपने बच्चों को इस महामारी से बचाने के लिए वो सब कुछ करें जो हमारी दादी नानी किया करतीं थीं। सही मायनों में कई बार मैं यही एहसास करती हूँ कि वही पुराना समय अच्छा था जब मेरी दादी बहार चप्पलें न उतारने पर डाँट लगा दिया करती थीं रात सोने से पहले गुड़ और दूध सुबह सुबह नीम की दातुन भागना दौड़ना एवं घर का ताज़ा बना छाछ एवं लस्सी पीना। मेरा आप सभी से यही निवेदन है कि अपनी संस्कृति अपनी भाषा एवं रहन सहन को बदलने का वक्त आ गया है अब जो मुश्किल आई है इस से लड़ें एवं दूर भगाएं |
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