लेखक - डा.के .एन.श्रीवास्तव सरस ( लखनऊ )
अन्तर मन मे प्रेम की ज्वाला
कोर मे छलके , पानी खारा !
बोझिल मन और थकी हैं साँसें
नज़र तके , फिर भी दरवाजा !
जब मन्द पवन का झोंका आता
एहसास सनम का मन कॊ कराता !
अब टूटा तन और मन भी हारा
फिरभी एकझलक पानेकॊ प्यासा !
फैली आँखे और स्वर मध्यम है
ललक मिलन की आश कराता !
इश्के मोहब्बत दिल मे रोशन
साथ रूह , सरस , यह जाता !
अन्तर मन मे प्रेम की ज्वाला
कोर मे छलके , पानी खारा !
बोझिल मन और थकी हैं साँसें
नज़र तके , फिर भी दरवाजा !
जब मन्द पवन का झोंका आता
एहसास सनम का मन कॊ कराता !
अब टूटा तन और मन भी हारा
फिरभी एकझलक पानेकॊ प्यासा !
फैली आँखे और स्वर मध्यम है
ललक मिलन की आश कराता !
इश्के मोहब्बत दिल मे रोशन
साथ रूह , सरस , यह जाता !