अशोक बंसल ( मथुरा )
हिंदी सिनेमा के मशहूर चरित्र अभिनेता कन्हैया लाल का नाम आते ही आज भी हमारे सामने एक तेज -तर्रार सूदखोर की तस्वीर उभर आती है। जबकि वे तमाम फ़िल्में जिनमें कन्हैया लाल ने अपने अभिनय से सिनेमा के इतिहास में स्थायी स्थान बनाया ,६०-७० साल पुरानी हैं। गौरतलब है कि “मदर इंडिया” फिल्म में जिसकी सबसे ज्यादा चर्चा होती है वह है नरगिस और महबूब खान लेकिन कन्हैयालाल के बिना यह सम्भव नहीं। सुनील दत्त ने अपने एक साक्षात्कार में कहा था “मै तो अक्सर कैमरे के पीछे खड़े होकर उनकी परफॉरमेंस को देखता था | कभी ऐसा नही लगता कि वो अभिनय कर रहे है | इतने विन्रम और सादगी पसंद इंसान थे कि उन्हें इस बात का जरा भी अहसास नही था कि वे कैमरे के सामने क्या चमत्कार कर जाते है “|
“मदर इंडिया” के बाद भी तमाम ऐसी फिल्मे है जिनमे कन्हैयालाल के अभिनय का जादू देखने को मिला है | “गंगा जमना”,“उपकार”,“दुश्मन”,“अपना देश”,“गोपी”,“धरती कहे पुकार” और “हम पांच” आदि | “गंगा जमना” ,में एक साथ काम कर चुके ट्रेजेडी किंग कहे जाने वाले दिलीप कुमार ने उनके बारे में कहा था कि “मै उनकी प्रस्तुति से बहुत घबराता था | संवाद अदायगी के दौरान वे जिस तरह से सामने वाले कलाकार को रिएक्शन देते थे उसका सामना करना बहुत मुश्किल होता था “| राजेश खन्ना ने जब “दुश्मन” में उनके साथ काम किया तो उन्हें भी कहना पड़ा “वो तो बहुत नेचुरल एक्टिंग करते थे” | “दुश्मन” में उनका एक संवाद काफी लोकप्रिय हुआ “कर भला तो हो भला” |
कन्हैया लाल की डायलॉग डिलीवरी में उनकी दमदार आवाज महत्वपूर्ण स्थान रखती है। वे मुक्त कंठ से और अपने किरदार में डूब कर अभिनय करते थे। उनकी दमदार आवाज की एक वजह उनका चतुर्वेदी होना था। मेरे मथुरा के चतुर्वेदी मित्र १००-१५० की भरी सभा में बिना माइक के बोलते है।
पिछले दिनों मैंने इस प्रसिध्द चरित्र अभिनेता का मथुरा कनेक्शन तलाशा है। दरअसल , १९१० में जन्मे कन्हैया लाल चतुर्वेदी बनारस के थे। पिता की नाटक मण्डली थी सो अभिनय का शौक था। नाटक मण्डली न चली तो वे भागकर बम्बई पहुँच गए। सात संतानें हुई। बड़ी बेटी उमा के लिए वर की तलाश में कन्हैया लाल को मथुरा आने का मौका मिला और मथुरा के उस समय के प्रसिध्द' भारत स्टूडियो' परिवार के लड़के ब्रज बिहारी को दामाद बनाया।
यह बात १९६० की है।यह शादी मथुरा के के आर डिग्री कालेज के हिंदी प्रोफ़ेसर डा ० ब्रज बल्लभ मिश्रा के प्रयास से हुई। तब ब्रज बल्लभ शर्मा मुंबई में थे और कन्हैया लाल के परिचित थे। लड़का ब्रज बिहारी ब्रज भल्लभ के ताऊ का बेटा था। ब्रज बल्लभ ने अपनी आत्म कथा '' जीवन सरिता ''(२०१४ में प्रकाशित हुई है ) में लिखा है कि कन्हैया लाल कलाकार तो उच्च दर्जे के थे लेकिन दारु का शौक अधिक था। पान और तम्बाकू के बिना नहीं रह पाते थे। मथुरा में जब भी आते दारु पिए होते और इस बात पर सब लोग उन्हें टोकते और नाक भौं सिकोड़ते।
अभिनेता कन्हैया लाल की छोटी बिटिया हिमा सिंह ने हमें बताया कि इस रिश्ते के बाद पिताजी कई बार मथुरा गए और मथुरा वालों के खाने पीने के शौक के कायल हुए । पिताजी को भी शाम की महफिलों का शौक था।
टाकीज में जाकर फ़िल्में देखने वाले लोग कन्हैया लाल के '' सुक्खी लाला '' वाले अविस्मरणीय किरदार पर फ़िदा हैं लेकिन वे इस तथ्य से अनभिज्ञ हैं कि कन्हैया लाल ने कई फिल्मों के डायलॉग लिखे और गीत भी। यह उनकी साहित्यिक प्रतिभा का ही नतीजा था जबकि उनकी स्कूली शिक्षा नगण्य थी । उनकी मृत्यु १९८२ में हुई।
बिटिया हिमा सिंह ने बताया कि मध्य वर्ग के जीवन पर लिखा अमृतलाल नागर का उपन्यास '' बूँद और समुद्र '' उन्हें बेहद पसंद था। उसके कुछ हिस्सों का पाठ वे अपने बच्चों को सुनाने के लिए करते थे। नागर जी कुछ साल बम्बई में रहे। कन्हैया लाल नागर जी के पास शाम को जाते , भांग छानते और फिर ख़ुशी ख़ुशी घर लौटते। हिमा आजकल अपने पिता की स्मृति रक्षा में लगी हैं और एक जीवनी लिखने में व्यस्त है।
यह एक बिडंबना ही है कि बॉलीबुड में न जाने कितनी प्रतिभाएं अपना भाग्य आजमाती है , संघर्ष करती है लेकिन ध्रुवतारे की तरह चमकने वाले कुछ लोग ही होते है और वे दर्शकों के मानस पर छ जाते हैं। लेकिन कन्हैया लाल ने परदे पर छोटी भूमिकाएं अदा की लेकिन उन्होंने अपनी अद्भुत अभिनय कला से दर्शकों का ही दिल नहीं जीता बल्कि सुनील दत्त, मनोज कुमार और अमिताभ बच्चन सरीखे महानायक का ध्यान अपनी और खींचा। बच्चन ने अपने एक इंटरव्यू में कहा है कि उन्होंने कन्हैया लाल के अभिनय से बहुत कुछ सीखा है। बच्चन के इंटरव्यू की बाबत मुझे प्रसिध्द साहित्यकार ,आलोचक जगदीश्वर चतुर्वेदी ने बताई।
हमको तो ख़ुशी इस बात की है छोटी भूमिकाओं का निभाने वाले इस बड़े कलाकार कन्हैया लाल ने अपना समधियाना मथुरा में तलाशा। प्राय देखा गया है महान कलाकारों के जीवन के निजी प्रसंग भी उनके प्रशंसकों को आनंद देते हैं ,गुदगुदाते हैं। कन्हैया लाल की बिटिया का मथुरा आगमन भी ऐसा ही एक प्रसंग है।
लॉक डाउन फजीते और कोरोना की विदाई के बाद हमारा सांस्कृतिक संगठन '' जन सांस्कृतिक मंच '' '' सिनेमा , चरित्र अभिनय और कन्हैया लाल '' विषय पर गोष्ठी आयोजित करेगा और इस मौके पर उनकी विदुषी बिटिया हिमा का सम्मान करेगा।
हिंदी सिनेमा के मशहूर चरित्र अभिनेता कन्हैया लाल का नाम आते ही आज भी हमारे सामने एक तेज -तर्रार सूदखोर की तस्वीर उभर आती है। जबकि वे तमाम फ़िल्में जिनमें कन्हैया लाल ने अपने अभिनय से सिनेमा के इतिहास में स्थायी स्थान बनाया ,६०-७० साल पुरानी हैं। गौरतलब है कि “मदर इंडिया” फिल्म में जिसकी सबसे ज्यादा चर्चा होती है वह है नरगिस और महबूब खान लेकिन कन्हैयालाल के बिना यह सम्भव नहीं। सुनील दत्त ने अपने एक साक्षात्कार में कहा था “मै तो अक्सर कैमरे के पीछे खड़े होकर उनकी परफॉरमेंस को देखता था | कभी ऐसा नही लगता कि वो अभिनय कर रहे है | इतने विन्रम और सादगी पसंद इंसान थे कि उन्हें इस बात का जरा भी अहसास नही था कि वे कैमरे के सामने क्या चमत्कार कर जाते है “|
“मदर इंडिया” के बाद भी तमाम ऐसी फिल्मे है जिनमे कन्हैयालाल के अभिनय का जादू देखने को मिला है | “गंगा जमना”,“उपकार”,“दुश्मन”,“अपना देश”,“गोपी”,“धरती कहे पुकार” और “हम पांच” आदि | “गंगा जमना” ,में एक साथ काम कर चुके ट्रेजेडी किंग कहे जाने वाले दिलीप कुमार ने उनके बारे में कहा था कि “मै उनकी प्रस्तुति से बहुत घबराता था | संवाद अदायगी के दौरान वे जिस तरह से सामने वाले कलाकार को रिएक्शन देते थे उसका सामना करना बहुत मुश्किल होता था “| राजेश खन्ना ने जब “दुश्मन” में उनके साथ काम किया तो उन्हें भी कहना पड़ा “वो तो बहुत नेचुरल एक्टिंग करते थे” | “दुश्मन” में उनका एक संवाद काफी लोकप्रिय हुआ “कर भला तो हो भला” |
कन्हैया लाल की डायलॉग डिलीवरी में उनकी दमदार आवाज महत्वपूर्ण स्थान रखती है। वे मुक्त कंठ से और अपने किरदार में डूब कर अभिनय करते थे। उनकी दमदार आवाज की एक वजह उनका चतुर्वेदी होना था। मेरे मथुरा के चतुर्वेदी मित्र १००-१५० की भरी सभा में बिना माइक के बोलते है।
पिछले दिनों मैंने इस प्रसिध्द चरित्र अभिनेता का मथुरा कनेक्शन तलाशा है। दरअसल , १९१० में जन्मे कन्हैया लाल चतुर्वेदी बनारस के थे। पिता की नाटक मण्डली थी सो अभिनय का शौक था। नाटक मण्डली न चली तो वे भागकर बम्बई पहुँच गए। सात संतानें हुई। बड़ी बेटी उमा के लिए वर की तलाश में कन्हैया लाल को मथुरा आने का मौका मिला और मथुरा के उस समय के प्रसिध्द' भारत स्टूडियो' परिवार के लड़के ब्रज बिहारी को दामाद बनाया।
यह बात १९६० की है।यह शादी मथुरा के के आर डिग्री कालेज के हिंदी प्रोफ़ेसर डा ० ब्रज बल्लभ मिश्रा के प्रयास से हुई। तब ब्रज बल्लभ शर्मा मुंबई में थे और कन्हैया लाल के परिचित थे। लड़का ब्रज बिहारी ब्रज भल्लभ के ताऊ का बेटा था। ब्रज बल्लभ ने अपनी आत्म कथा '' जीवन सरिता ''(२०१४ में प्रकाशित हुई है ) में लिखा है कि कन्हैया लाल कलाकार तो उच्च दर्जे के थे लेकिन दारु का शौक अधिक था। पान और तम्बाकू के बिना नहीं रह पाते थे। मथुरा में जब भी आते दारु पिए होते और इस बात पर सब लोग उन्हें टोकते और नाक भौं सिकोड़ते।
अभिनेता कन्हैया लाल की छोटी बिटिया हिमा सिंह ने हमें बताया कि इस रिश्ते के बाद पिताजी कई बार मथुरा गए और मथुरा वालों के खाने पीने के शौक के कायल हुए । पिताजी को भी शाम की महफिलों का शौक था।
टाकीज में जाकर फ़िल्में देखने वाले लोग कन्हैया लाल के '' सुक्खी लाला '' वाले अविस्मरणीय किरदार पर फ़िदा हैं लेकिन वे इस तथ्य से अनभिज्ञ हैं कि कन्हैया लाल ने कई फिल्मों के डायलॉग लिखे और गीत भी। यह उनकी साहित्यिक प्रतिभा का ही नतीजा था जबकि उनकी स्कूली शिक्षा नगण्य थी । उनकी मृत्यु १९८२ में हुई।
बिटिया हिमा सिंह ने बताया कि मध्य वर्ग के जीवन पर लिखा अमृतलाल नागर का उपन्यास '' बूँद और समुद्र '' उन्हें बेहद पसंद था। उसके कुछ हिस्सों का पाठ वे अपने बच्चों को सुनाने के लिए करते थे। नागर जी कुछ साल बम्बई में रहे। कन्हैया लाल नागर जी के पास शाम को जाते , भांग छानते और फिर ख़ुशी ख़ुशी घर लौटते। हिमा आजकल अपने पिता की स्मृति रक्षा में लगी हैं और एक जीवनी लिखने में व्यस्त है।
यह एक बिडंबना ही है कि बॉलीबुड में न जाने कितनी प्रतिभाएं अपना भाग्य आजमाती है , संघर्ष करती है लेकिन ध्रुवतारे की तरह चमकने वाले कुछ लोग ही होते है और वे दर्शकों के मानस पर छ जाते हैं। लेकिन कन्हैया लाल ने परदे पर छोटी भूमिकाएं अदा की लेकिन उन्होंने अपनी अद्भुत अभिनय कला से दर्शकों का ही दिल नहीं जीता बल्कि सुनील दत्त, मनोज कुमार और अमिताभ बच्चन सरीखे महानायक का ध्यान अपनी और खींचा। बच्चन ने अपने एक इंटरव्यू में कहा है कि उन्होंने कन्हैया लाल के अभिनय से बहुत कुछ सीखा है। बच्चन के इंटरव्यू की बाबत मुझे प्रसिध्द साहित्यकार ,आलोचक जगदीश्वर चतुर्वेदी ने बताई।
हमको तो ख़ुशी इस बात की है छोटी भूमिकाओं का निभाने वाले इस बड़े कलाकार कन्हैया लाल ने अपना समधियाना मथुरा में तलाशा। प्राय देखा गया है महान कलाकारों के जीवन के निजी प्रसंग भी उनके प्रशंसकों को आनंद देते हैं ,गुदगुदाते हैं। कन्हैया लाल की बिटिया का मथुरा आगमन भी ऐसा ही एक प्रसंग है।
लॉक डाउन फजीते और कोरोना की विदाई के बाद हमारा सांस्कृतिक संगठन '' जन सांस्कृतिक मंच '' '' सिनेमा , चरित्र अभिनय और कन्हैया लाल '' विषय पर गोष्ठी आयोजित करेगा और इस मौके पर उनकी विदुषी बिटिया हिमा का सम्मान करेगा।