लेखिका - विनीता मिश्रा
लखनऊ
रात भर एक
आँधी चलती रही
रात भर शब्द गिरते रहे ।
हम बटोर पाए
न धर पाए
न रच पाए
बस , पानी पे चन्दन घिसते रहे ।
तूफ़ाँ आया कोई
पानी बरसा किया
हम ख़ुद में ही
ख़ुद से , महकते रहे ।
टीस उठती रही
दर्द बढ़ता गया
ख़्वाब, ख़्वाबों के
लेकिन हम बुनतेरहे ।
लोग कहते थे
तूफ़ा है आया कोई
डर के बाहर न घर से
है आया कोई
डर के बाँहों में अपनी
सिमटते रहे ।
कोई कहता ग़ज़ल
कोई कविता इसे
हम ये जाने बिना
हाल अपना कहें।
कोई सुनता रहा
हम भी कहते रहे ।
बस,
पानी पे चंदन घिसते रहे ।