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गजल- 'आज रिश्तों की कद्र है ही कहाँ'- शैलेंद्र श्रीवास्तव (अभिनेता)

                                                        शैलेंद्र श्रीवास्तव (अभिनेता)
अपने रुख़ पर नक़ाब रहने दो।
दरमियाँ  फ़ासला है रहने  दो।
ये नए दौर की मोहब्बत है,
आँखो आँखो में बात होने दो।
नज़रें मिल जायें तो ग़नीमत है,
जिस्म मिलने की बात रहने दो।
जो कभी कह ना पाये हम तुमसे,
आज दिल की वो बात कहने दो।
अब तो रूसवाइयों का ख़ौफ़ नहीं,
सबके चेहरे ढके ही रहने दो।
जिस्म मिल जायें ये ज़रूरी नहीं,
अब तो नज़रों से बात होने दो।
आज रिश्तों की क़द्र है ही कहाँ,
रिश्ते नातों की बात रहने दो।
तुझको देखूँ तो देखता ही रहूँ,
ख़ूबसूरत गुनाह करने दो।

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