शरद कुमार वर्मा
शिक्षक, लखनऊ
धरती वासी हैं अकुलाये।।
भक्त तुम्हारे व्याकुल सारे।
वैक्सीनेशन के है सहारे ।।
ऐसे में किसे गुहार लगायें।
हे पवनसुत क्यों संजीवनी अब तक न लाये ।।
क्यों हो रही इतनी देर।
कहाँ रह गये अबकी बेर ।।
आओगे कब पर्वत उठाये।
हे पवनसूत संजीवनी क्यों अब तक न लाये ।।
कितने लक्ष्मण मूर्छित पड़े हैं।
कितनों ने दम तोड़ दिये ।।
राम के आँसू सूख गये।
क्या नाता भक्तों से छोड़ दिये ।।
विलाप हमारा क्यों न सुन पाये।
हे पवनसुत संजीवनी क्यों अब तक न लाये ।।
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