लखनऊ।
कानपुर देहात के बिकरु गांव में पुलिस के साथ खेला गया खूनी खेल, खुद में कई अनसुलझे सवाल समेटे हुए है। इन पर भी जांच टीम को ध्यान रखना होगा।
मुख्य आरोपी विकास दूबे के घर पीड़ित फरियादी राहुल को लेकर पहुंचे सस्पेंड थानेदार विनय तिवारी ने अपने साथ हुए सलूक को छिपाया। उन्होंने किसी तक यह बात नहीं जाने दी, लेकिन क्या एसएसपी के पास शिकायत लेकर पहुंचे राहुल तिवारी ने भी इस बात को छिपाया? वैसे सोचने वाली बात यह है कि यदि उसने भी, विनय तिवारी के साथ बदसलूकी की घटना को छिपाया तो आखिर क्यों? क्या कोई साजिश रची गई थी?
स्पष्ट है कि यदि बताया होता तो वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक न सिर्फ विकास के खिलाफ मुकदमा दर्ज करने के आदेश देते, बल्कि पुलिस को दबिश के समय अतिरिक्त एहतियात बरतने के निर्देश भी देते। जिसमें अत्याधुनिक हथियारों के अलावा ड्रोन आदि आधुनिक तकनीक का सहारा लेना भी शामिल होता। मामले की गंभीरता यदि पहले ही समझ कर विकास आदि के मोबाइल फोन सर्विलांस पर लगाये जाते तो पता चल सकता था कि दबिश की भनक लगने के बाद वह फरार होने के बजाय अपनी टीम इकट्ठा कर रहा है। संभवतः यही कारण रहा कि पुलिस टीम आधी-अधूरी तैयारियों के साथ इतने बड़े ऑपरेशन पर निकल पड़ी? बिना केस स्टडी किये कि जिस अपराधी को पकड़ने जाना है, उस पर संगीन धाराओं में कितने मुकदमे दर्ज हैं।
जब कहीं दबिश देनी होती है तो पहले संबंधित थाने के अधिकारी, स्टाफ से उक्त स्थान की भौगोलिक जानकारी हासिल की जाती है। यदि ऐसा किया गया होता तो पुलिस टीम एक तरफ से न जाकर चारों तरफ से, या फिर जितना संभव होता, घेरा डालती।
जब विकास के घर के रास्ते को जेसीबी खड़ी कर वाहनों के आवागमन के लिए बंद कर दिया गया तो फिर पुलिस सतर्क क्यों नहीं हुई? यह क्यों नहीं सोचा गया कि रास्ता पुलिस को आने से रोकने की कोशिश का ही एक हिस्सा था। ...और यदि पुलिस को साजिश की बू आ गई थी तो उन्हें अंदर घुसने के लिये प्रेरित किसने किया? ऐसा करने वाले टीम में किस पोजीशन में थे!
ऐसे बहुत से सवाल हैं, जो अभी सुलझने बाकी हैं।
निशाने पर छोटी मछलियां!
दूसरी ओर कानपुर कांड में अफसरों के निशाने पर फिलहाल छोटी मछलियां हैं।
चौबेपुर में तैनात दरोग़ा कुँवर पाल, दरोग़ा कृष्ण कुमार शर्मा और सिपाही राजीव को सस्पेंड किया गया है।
इस सनसनीखेज कांड में अभी और कार्यवाही की उम्मीद है।
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