चलो बीते सावन को वापस लाते है
जहां पड़ते थे झूले कभी बागों में
उस बाग़ को वापस लाते है
वो दोड़ना बाग़ में भरी दोपहरी बेफिक्र होकर
ला सकें तो उस सुनहरी धूप को वापस लाते है
कुछ भी नही था मगर प्रेम बहुत था लोगो में,
तो चलो इस कलम से उस प्रेम को वापस लाते है
आज बैठी बैठी उदास किसी सूखे पेड़ के नीचे उस बचपन को याद करती हु,
गर होसके तो उस हरे पेड़ को वापस लाते है
छूट गए अपने, छूट गए गाँव आज घूमकर गाँव सारा, पुराने दिनों को वापस लाते है
चलो बीते सावन को वापस लाते है
अब तो ना वो सावन रहा ना सावन क़ी फुहारे
फिर भी एक कोशिश करके उस ठंडी ठंडी फुहार को वापस लाते है
अब तो फीके फीके से लगते है त्यौहार सारे
गर होसके कामयाब कोशिश तो त्योहारों क़ी मिठास को वापस लाते है
चलो बीते सावन को वापस लाते है
लेखिका- सीमा तोमर
गाज़ियाबाद
जहां पड़ते थे झूले कभी बागों में
उस बाग़ को वापस लाते है
वो दोड़ना बाग़ में भरी दोपहरी बेफिक्र होकर
ला सकें तो उस सुनहरी धूप को वापस लाते है
कुछ भी नही था मगर प्रेम बहुत था लोगो में,
तो चलो इस कलम से उस प्रेम को वापस लाते है
आज बैठी बैठी उदास किसी सूखे पेड़ के नीचे उस बचपन को याद करती हु,
गर होसके तो उस हरे पेड़ को वापस लाते है
छूट गए अपने, छूट गए गाँव आज घूमकर गाँव सारा, पुराने दिनों को वापस लाते है
चलो बीते सावन को वापस लाते है
अब तो ना वो सावन रहा ना सावन क़ी फुहारे
फिर भी एक कोशिश करके उस ठंडी ठंडी फुहार को वापस लाते है
अब तो फीके फीके से लगते है त्यौहार सारे
गर होसके कामयाब कोशिश तो त्योहारों क़ी मिठास को वापस लाते है
चलो बीते सावन को वापस लाते है
लेखिका- सीमा तोमर
गाज़ियाबाद
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