लेखिका- सोनल शुक्ला
हमारे देश की हालत है अब देखी नहीं जाती,
बड़ा अफ़सोस है दिलको के मैं कुछ कर नहीं पाती,
बड़े बेचैन हैं मेरे दिन बड़ी बेगैरत हैँ रातें,
बंद करती हुँ जो आँखों को नींद भी अब नहीं आती,
कहानी एक मजदूर की बयाँ करती हूँ मैं तुमको,
कि एक उम्मीद ले निकला घर जाने कि जल्दी थी उनको,
करो भगवान का शुक्रिया दिया जिसने सब कुछ हमको,
जरा पूछो उनके दिल से कि एक रोटी भी नहीं जिनको,
वो निकला था भूखा घर से भगाया था जिन्होंने दर से,
याद रखना ऊपर वाला भी माफ़ नहीं करेगा तुमको,
कितना पैदल चल रोया होगा भूख से सुध बुध खोया होगा,
तपती गर्मी मे सड़कों पे बेसहारा सोया होगा,
न जाने कितनी बार उसने अपना आपा खोया होगा,
मिलूँ परिवार से अपने ये एक हसरत लिए मन मे,
मर गया वो थक कर चलते दब गयी हसरत भी दिल मे,
कि सब परिवारी जन उसके रोज ही बाँट ताकते है,
कि आएगा आज शायद राहों को बार बार झांकते हैं ,
न है कुछ खाने को रोटी बैठे है बिन पानी प्यासे,
न जाने किस घडी किस पल टूट जाये उनकी सासें,
न कोई बात न कोई चीज ही अब मन को ही सुहाती है,
है जो एक गरीब की दशा है पीड़ा सी सताती है,
करोगे जो भला इनका ख़ुशी से आँख भर आती है,
की एक गरीब के दिल से निकली दुआ भी काम आती है,
छोटा पड़ जाता है दामन झोली खुशियों से भर जाती है,
कैसे कर देते हो निर्दोष तुम संतो की जो हत्या,
थे वो लाचार और बेबस घेरा जब देख निह्था,
दिलाने न्याय की जगह हो रही सियासी सत्ता,
टूट पड़ते हो तुम ऐसे बन प्रहारी का एक जत्था,
होके इंसान क्यों इंसानियत शर्मशार करते हो,
किसी की बहिन बेटी का आँचल क्यूँ तार तार करते हो,
क्यूँ ऐसे गिरे हुए अपराध तुम बार बार करते हो,
बन गए हो ऐसे क्यों ईश्वर से भी तुम न डरते हो,
बुरे कर्मों से पाप का तुम क्यूँ घड़ा ये भरते हो,
क्यूँ धरती माँ का आँचल तुम लहू रंग लाल सींचते हो,
किसी की माँ बहन क्युँ अपनी गालियों मे खींचते हो,
न कर अपराध अब कोई कर तू सम्मान नारी का,
जो लायी धरती पर तुझको प्यार करती बलिहारी सा,
तू ले अब जन्म एक नया बने जो मनुष्य अवतारी का,
दिखा दे दुनिया को ये देश है मेरा भगवाधारी का,
न कर तू चिंता अब बन्दे देश की इस महामारी का,
बना होगा कोई तो अंत इस कोरोना बिमारी का,
घरों से रोज़ निकलने की आदत तुम्हारी नहीं जाती,
इसी कारण ये महामारी देश से भाग नहीं पाती,
अंत की लाइनों मे सोनल ये तुम सबको है समझाती,
एकता हो देश मे तो जंग हर जीत ली जाती,
बड़ी से बड़ी समस्या भी यहाँ से भाग है जाती,
कोई बीमार न होए कोई परिवार न खोए,
दुआ है बस यही मेरी कोई अपनों को ना खोए,
भरा हो पेट अब सबका चैन नींद सब सोएं,
रहे मुस्कान चेहरों पे सुखी हर किसान अब होए,
लहलहाती हो फसल सबकी कि इतना सारा धान होए,
ख़ुशी की हो लहर हर ओर मेरा भारत महान होए,
आसमाँ से भी ऊँचा देश का मेरा स्वाभिमान होए।
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