लेखिका- अर्चना मुकेश मेहता, आगरा
एक मासूम झीने से झरोखे से
तरसती निगाहों से
झाँक रहा है...
क्यूँ एक के पास भरपेट है खाने को
क्यूँ दूसरा नम आँखों से रोटी को
ताक रहा है..
दे उसे भी मिल बाँट के खाने की आदत
जो खाने में से सब्जी को भी
छाँट रहा है.......
खेलने दे बेखौफ अंजू इसको मिट्टी में
ये किस बात का गुरुर है जो तू
हाँक रहा है....
वो गरीब मैं अमीर ऐसा फ़र्क़ क्यूँ करता है
क्यूँ बचपन को अमीर गरीब में
आँक रहा है...
एक मासूम झीने से झरोखे से
तरसती निगाहों से
झाँक रहा है...
क्यूँ एक के पास भरपेट है खाने को
क्यूँ दूसरा नम आँखों से रोटी को
ताक रहा है..
दे उसे भी मिल बाँट के खाने की आदत
जो खाने में से सब्जी को भी
छाँट रहा है.......
खेलने दे बेखौफ अंजू इसको मिट्टी में
ये किस बात का गुरुर है जो तू
हाँक रहा है....
वो गरीब मैं अमीर ऐसा फ़र्क़ क्यूँ करता है
क्यूँ बचपन को अमीर गरीब में
आँक रहा है...
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