नई दिल्ली
कानपुर के गैंगस्टर और सीओ समेत आठ पुलिसकर्मियों की हत्या के आरोपी विकास दुबे के एनकाउंटर मामले की बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि एक हफ्ते में आयोग अपनी जांच शुरू करे और आने वाले दो माह में इसे पूरा कर लिया जाए। सुप्रीम कोर्ट ने यूपी सरकार को हिदायत दी है कि विकास दुबे एनकाउंटर जैसी गलती दोबारा भविष्य में न हो।
इससे पहले बीते सोमवार को हुई सुनवाई में चीफ जस्टिस बोबड़े ने विकास दुबे के एनकाउंटर की जांच के लिए दोबारा कमेटी के गठन का निर्देश दिया था। यूपी सरकार की तरफ से पेश सॉलिसीटर जरनल तुषार मेहता ने सर्वोच्च अदालत के पूर्व जज बीएस चौहान और यूपी पुलिस ने पूर्व डीजी केएल गुप्ता को जांच आयोग में शामिल करने के लिए उनका नाम का प्रस्ताव रखा। जिस पर अदालत ने अपनी सहमति दे दी है। ऐसे में पहले से एनकाउंटर की जांच कर रहे जस्टिस शशिकांत अग्रवाल भी आयोग में रहेंगे। लेकिन, आयोग की अध्यक्षता बीएस चौहान करेंगे। अदालत ने दो माह के भीतर रिपोर्ट मांगी है।
तुषार मेहता ने कहा कि जांच आयोग इसकी जांच करेगा कि 64 आपराधिक केस लंबित रहने के बावजूद विकास दुबे कैसे जमानत या पैरोल पर बाहर आने में कामयाब हो गया? कौन उसे संरक्षण दे रहा था? कोर्ट ने कहा कि, ये सबसे महत्वपूर्ण पहलू है, जिसकी जांच होनी चाहिए।
पुलिस ने दाखिल किया था हलफनामा
पुलिस ने विकास दुबे के एनकाउंटर को सही बताते हुए सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल किया था। इसमें कहा था कि विकास दुबे के एनकाउंटर की तुलना हैदराबाद के रेप आरोपियों के एनकाउंटर से नहीं की जा सकती। तेलंगाना सरकार ने एनकाउंटर की जांच के लिए न्यायिक आयोग का गठन नहीं किया था, जबकि यूपी सरकार ने जांच के लिए न्यायिक आयोग बनाया है।
पुलिस ने विकास दुबे के एनकाउंटर को सही बताते हुए सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल किया था। इसमें कहा था कि विकास दुबे के एनकाउंटर की तुलना हैदराबाद के रेप आरोपियों के एनकाउंटर से नहीं की जा सकती। तेलंगाना सरकार ने एनकाउंटर की जांच के लिए न्यायिक आयोग का गठन नहीं किया था, जबकि यूपी सरकार ने जांच के लिए न्यायिक आयोग बनाया है।
याचिकाकर्ता ने न्यायिक आयोग को अवैध बताया था
याचिकाकर्ता ने कोर्ट से कहा था कि न्यायिक आयोग का गठन अवैध है। सरकार ने इसके लिए विधानसभा की मंजूरी नहीं ली न ही अध्यादेश पारित किया है। जस्टिस शशिकांत अग्रवाल हाईकोर्ट के रिटायर जज नहीं हैं। उन्होंने विवादास्पद हालात में अपने पद से इस्तीफा दिया था। पुलिस ने 16 साल के प्रभात मिश्रा का भी एनकाउंटर कर दिया। पुलिस ने बदला लेने के लिए गैंगवार जैसा रवैया अपनाया। एनकाउंटर की जांच के लिए जस्टिस शशिकांत की अगुआई में ही एक सदस्यीय आयोग बनाया गया है।
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