हम सद्गुरुदेव ब्रह्मर्षि योगिराज श्री देवराहा बाबा सरकार के भगवत्प्राप्ति सम्बन्धी साधन पर वाराणसी के छात्रों को दिये गये प्रवचन को आपसे साँझा कर रहे हैं। पूज्य बाबा सरकार बताते हैं कि श्रीभगवान को पाने का सबसे सरल साधन है 'प्रार्थना'। प्रार्थना का स्वरूप कैसा होना चाहिए, इसी बात की हम चर्चा कर रहे हैं।
पूज्य बाबा सरकार कहते हैं कि वासनारहित प्रार्थना प्रभु के हृदय में घर कर जाती है। वासना को यदि विवेक-पूर्वक भगवान् के मार्ग में मोड़ दिया जाये तो वह उपासना बन जाती है और मनुष्य को मुक्ति दिलाती है।
अनुकूलता की प्राप्ति और प्रतिकूलता की निवृत्ति- यह इच्छा हमारी प्रार्थना को दूषित कर देती है क्योंकि तब चिन्तन का स्थान चिंता ले लेती है। भेद करने की शक्ति को 'विवेक' कहते हैं। चिंता और चिन्तन में भेद करते हुए हम चिंता को त्याग दें। तब भले ही हम किसी इच्छा से प्रेरित होकर प्रार्थना करना प्रारंभ करें पर शुद्ध प्रभु-चिन्तन के माध्यम से हम प्रभु के चरणों में पहुँच जायेंगे।
देखिए, विवेक शक्ति का विकास सत्संग से होता है। तब चिंता और चिन्तन में अन्तर समझ में आता है कि सोच में प्रभु हैं तो चिन्तन है और सोच में मांग (इच्छा) है तो चिंता है। चिंता को त्यागने का सामर्थ्य भी सत्संग से मिलता है जब प्रभु के कृपामय स्वभाव पर विश्वास आता है।
भले हम प्रभु से कुछ माँगने जायें पर उनके पास पहुँचने पर माँग को उनके चरणों में रखकर (चिंता को त्याग कर) प्रभु का ही चिन्तन करें।
पूज्य बाबा सरकार कहते हैं कि तुम भूल जाते हो कि मन बोलता है या शरीर। गाने का यंत्र मात्र न बनो जैसे ग्रामोफोन में रिकार्ड बजता है, प्रार्थना करो- द्रवित हृदय से।
हम ऐसे भावहीन प्रार्थना न करें जैसे कि रिकॉर्ड बज रहा हो। जब हमें कोई स्तोत्र रट जाता है तब हम ऐसे ही हो जाते हैं।
ध्यान दीजिए, जब किसी अधिकारी से हमारा कोई कार्य सधना होता है, और हम उसके सामने पहुँचते हैं तब हम बहुत सचेत रहते हैं। हम तन और मन दोनों से वहाँ होते हैं। तब भले हम मांग लेकर पहुंचे हैं पर ध्यान इस बात पर रहता है कि हम अपनी बात अच्छी तरह से अधिकारी के सामने रख दें। हम अपने हर शब्द पर ध्यान देते हैं।
ऐसे ही जब हम प्रार्थना करें तो सबसे पहले यह बात मन में दृढ़ता से बैठा लें कि प्रभु हमें सुन रहे हैं और वो सबकुछ कर सकते हैं। फिर हम उनसे जो कुछ भी कहें उसके एक-एक शब्द को अनुभव करें।
ये करके देखें, पूरी सच्चाई से तन और मन दोनों को उपस्थित रखें और प्रार्थना करें। प्रभु अवश्य सुनेंगे।
पूज्य बाबा सरकार कहते हैं कि स्वयं परमात्मा में प्रवेश कर जाओ, वहाँ से उठा लाओ जितना वस्त्र में उठा सको। हाथ फैलाने की क्या आवश्यकता?
अब तक हम बात कर रहे थे कि मांगो मत। यह बात जिज्ञासु और ज्ञानी भक्त को तो रुचिकर लगेगी पर अर्थार्थी (जिसे बहुत सी वस्तुएँ चाहिए) और आर्त (जिसे संकट से मुक्ति चाहिए), उनको सारी बात समझ में आते हुए भी ज्यादा भाती नहीं होगी। तो पूज्य बाबा सरकार यहाँ स्पष्ट कर देते हैं कि मांग रहेगी तो परमात्मा तक पहुँच ही नहीं हो पायेगी। इसलिए पहले पहुँच जाओ फिर तो जो चाहोगे वो मिल जायेगा। जैसे ध्रुव जी ने पहले श्रीहरि को पा लिया फिर सबकुछ मिल गया। उनके पास इच्छा थी पर उसके लिये जब वो श्रीहरि के पास चले तो उन्हें केवल श्रीहरि को पाना था। चीजों को पाना होता तब तो उन्हें बहुत प्रलोभन मिले थे, लेकिन वो विचलित नहीं हुए।
अब परमात्मा में प्रवेश कैसे करना है? और 'माँग' उसमें कैसे बाधक बन जाती है, जिससे हमारी प्रार्थना प्रभावी नहीं होती, आदि-आदि चर्चा हम कल करेंगे।
श्रीराम प्रपत्ति पीठाधीश्वर
स्वामी (डॉ) सौमित्रिप्रपन्नाचार्य
(देवराहा बाबा साधना केंद्र, लखनऊ)
अध्यक्ष, देवराहा बाबा आश्रम, हरदोई।
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