-निखिलेश मिश्रा, लखनऊ
जिस देश के अखबारों के प्रथम पृष्ठ - पर गुटखा का विज्ञापन छपता हो, वहां की सड़कों पर थूक नही तो क्या अमृत वर्षा होगी?
क्या महज एक वैधानिक चेतावनी लिखकर किसी की हत्या का लाइसेंस प्राप्त किया जा सकता है?
यदि हमारे यहां योग-व्यायाम हेतु इतना बल दिया जाता है तो नकली गैम्बियर युक्त पान मसाला को बैन क्यों नही किया जाता। महज एक्ट और उपबन्धों के आधार पर समाज मे नशे के रूप में ज़हर खाने के लिए नही बेंचा जाना चाहिए।
यह मुद्दा संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत नागरिकों को प्राप्त उनके अधिकार से भी जुड़ा है। हर नागरिक का अधिकार है कि उसे स्वच्छ वातावरण मिले। खाद्य सुरक्षा एवं मानक अधिनियम के तहत इन सभी उत्पादों का बनाया जाना कानून का उल्लंघन है। चूंकि गुटखा बनाने वाली लॉबी बहुत ही सशक्त है, जिसके चलते सरकार भी कोई ठोस कदम नहीं उठा रही है जबकि खाद्य सुरक्षा कानून के तहत इन उत्पादों को निर्मित करना अधिनियम का उल्लंघन है।
एक तरफ सरकार का कहना है कि वह अपने नागरिको के सवास्थ्य लाभ के लिए प्रयासरत है वहीं दूसरी ओर कैंसर कारक नशा खुले आम दो दो रुपये के पॉउच में छोटा सा वैधानिक चेतावनी लिखकर बेंचा जा रहा है। एक तरह से देखा जाय तो यह समाज में जनसंख्या कम करने का और खतरनाक संक्रमण फैलाने का कार्य भर ही तो है।
ऐसे में चाहे जितना विरोध हो भले ही लट्ठ चलवाया जाय, गिरफ्तारी करवाई जाय पर पान मसाला यूपी में पूर्णतः बन्द कर दिया जाना चाहिए। दो रुपये के पॉउच में आपको सुपाड़ी के साथ शुद्ध केसर पिस्ता जफरानी और मंहगा कत्था तो कभी नही मिलेगा वह ही मिलेगा जो आपको कैंसर का रोगी बना कर घर के बर्तन बेंचने को मजबूर कर देगा।
अन्य देशों की तुलना में देश में मुख कैंसर बहुत बड़ी समस्या के तौर पर सामने आ रही है। पश्चिमी देशों में मुख कैंसर का प्रतिशत दो से तीन है। जबकि भारत में 25 से 30 प्रतिशत तक मुख कैंसर होता है।
भारतीय चिकित्सा अनुसंधान काउंसिल के अनुसार वर्ष 1991 में हर दूसरे मिनट में गुटखा और पान मसाला खाने वाले तीन लोगों की मौत इस वजह से हुई। अब निश्चित रूप से यह संख्या बढ़ चुकी होगी। दूसरी तरफ केंद्र की ओर से गठित समिति यह स्पष्ट कर चुकी है कि पूरे विश्व में से 86 प्रतिशत मुंह का कैंसर अकेले भारत में ही होता है और इसके लिए चबाने वाले तंबाकू उत्पाद ज्यादा जिम्मेदार हैं।
यदि सरकार को वाकई लोगो के स्वास्थ लाभ की चिंता है तो इन पर ध्यान आकृष्ट किया जाना नितांत आवश्यक है और सैम्पल फेल होने पर सम्बन्धितों के विरुद्ध अन्य सम्बन्धित धाराओं के साथ साथ 307 IPC पर भी मुकदमा दर्ज कराना चाहिए। मूर्ख बनाकर हत्या का प्रयास करने वाले उद्योगपतियों की सजा फांसी से कम कुछ नही होनी चाहिये।
"आप पॉउच पर महज वैधानिक चेतावनी लिख कर किसी की हत्या नही कर सकते और फिर हत्या प्रत्यक्ष हो या अप्रत्यक्ष क्या फर्क पड़ता है जब उसका अंतिम परिणाम अघोषित रूप से मौत ही हो।"
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