देश

national

देखो बस्ती में झाँक कर - दिव्य श्वेत

Sunday, August 30, 2020

/ by Dr Pradeep Dwivedi

दिव्य श्वेत ( शिवपुरी)

तुम्हारी और हमारी 

तो यूँही रात गुजर है जाती

सोचो जिस मासूम को ,

आज खाना नसीब नहीं हुआ, 

उसे नींद कैसे आती।

देखो बस्ती में झाँक कर

कोई मासूम, रात भर चाँद को निहारता है,

पानी पी पीकर रात गुजारता है।

बड़ी आसानी से कह देते हो तुम

तकल़ीफ इतनी है कि बतायी नही जाती

सोचो भूख के कारण 

उस मासूम की आँखो मे

आँसू है, 'भूख लगी है माँ', उसकी जुबान

यह कह भी नही पाती।

तुम्हारी और हमारी 

तो यूँही रात गुजर है जाती

सोचो जिस मासूम को 

आज खाना नसीब नहीं हुआ,

 उसे नींद कैसे आती।

Don't Miss
© all rights reserved
Managed By-Indevin Group