दिव्य श्वेत ( शिवपुरी)
तुम्हारी और हमारी
तो यूँही रात गुजर है जाती
सोचो जिस मासूम को ,
आज खाना नसीब नहीं हुआ,
उसे नींद कैसे आती।
देखो बस्ती में झाँक कर
कोई मासूम, रात भर चाँद को निहारता है,
पानी पी पीकर रात गुजारता है।
बड़ी आसानी से कह देते हो तुम
तकल़ीफ इतनी है कि बतायी नही जाती
सोचो भूख के कारण
उस मासूम की आँखो मे
आँसू है, 'भूख लगी है माँ', उसकी जुबान
यह कह भी नही पाती।
तुम्हारी और हमारी
तो यूँही रात गुजर है जाती
सोचो जिस मासूम को
आज खाना नसीब नहीं हुआ,
उसे नींद कैसे आती।