कण कण में बसने वाले
सकल विश्व के पालनहार बने हैं
अभिवादन से लेकर स्वर्ग गमन तक
राम यूँ ही नहीं हर मुख के उदगार बने हैं
राम के जैसा कौन हुआ है
अब आगे होगा भी कौन
राजा से जब बने तपस्वी
राम रहे थे तब भी मौन
कैकेयी जैसी निष्ठुर को भी
माँ की संज्ञा दे आऐ थे
पिता वचन के रखने को
वो राम ही थे जो वन आऐ थे
पुरुषोत्तम है वो, रामायण के सार बने हैं
राम यूँ नहीं हर मुख के उदगार बने हैं
राम को काल्पनिक कहने वालों
कुछ अपना भी पता लगा लो
राम नही होते तो तुम कैसे होते
वृक्ष विहीन धरा के जैसे होते
पुरूषार्थ मनुष्य में कितना होता
राम ने जग को सिखलाया था
परशुराम से रावण तक का
वो राम ही थे, जिनका दंभ मिटाया था
वो बानर रीछ किरातों के उर के हार बने हैं
राम यूँ ही नहीं हर मुख के उदगार बने हैं
लेखक - पंकज त्रिपाठी
लखनऊ
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