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प्यारी बहना.... मंदीप की कलम से

Monday, August 3, 2020

/ by Dr Pradeep Dwivedi
मै दूर नहीं हूं तुम से। बस आ ना सका इस बार।कोशिश बहुत की आने की पर छुट्टी मुकम्मल ना हो पाई। मां बाबू जी की बहुत याद आती है। अकेला तो नहीं हूं यहां पर आप लोगो की याद बहुत आती है। बड़े सहाब को अर्जी लगाई थी मैने पर मुकम्मल ना हो सकी। क्योंकि सरहद पर तनाव चल रहा है।

मेरी प्यारी बहन मुझे उम्मीद है तुम मेरे ना आने पर मायूस ना होगी।मुझे पता है तुम मेरा इंतजार कर रही होगी।दो बरस बीत गए राखी पर तुम अपनी थाली सजा कर रख देती हो और मै अा ही नहीं पाता। जिस दिन रखी का त्यौहार होता था। उस दिन सबसे पहले मुझे उठकर मेरी कलाई पर तुम्हारा राखी बांधना मुझे अच्छे से याद है।मेरे कम पैसे देने पर तेरा रूठ जाना भी मुझे याद है।बाबू जी से मेरी शिकायते करना भी याद है।मुझे ये भी याद है वो पैसे तुम मुझे जरूरत पड़ने पर लोटा भी देती थी।

मेरी प्यारी छोटी बहना मुझे उम्मीद है तुम मां बाबू जी का ख्याल अच्छे से रख रही होगी। और मुझ से शिकायत तो तेरी रहती ही है।बस दूर हूं तुम से पर इतना दूर भी नहीं की तुम से झगड़ा ना कर सकू। मुझे मालूम है  इस बार जब मै घर आऊ तुम अपनी शरारतें कम नहीं करोगी। इस बार बड़े सहाब से लंबी छुट्टी की गुहार कर के तुम्हारे पीले हाथ करने अा रहा हूं।फिर झगड़ा तुम जीजा जी से करना। जैसे तुम मेरी लड़ाई के बाद चुपके से मेरी शर्ट फाड़ देती थी उस की शर्ट फाड़ना।हा बहना इस बार माफ कर देना इस रखी पर भी अा ना सका।तुम्हारी बहुत याद आती है। मां बाबू जी को मेरी खेरियत बताना।।मैने आप के लिए एचएमटी की कलाई घड़ी भेजी है।हा तुम ने तो राखी भेजी नहीं मेरी कंजूस बहना।जल्द आने का झूठा वादा करके अलविदा लेता हूं।

लेखक - मनदीप साई
कुरुक्षेत्र
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