योगिनी मीनाक्षी शर्मा, नई दिल्ली |
बस अकारण प्रसन्न रहो...
बस एक यही पल है,
बाकी सब तो
मन का ही छल है ...
कभी हँसी होठों पे
कभी आँखों में जल है,
कभी गान मिलन के
कभी विदा की हलचल है.
बस इक लम्हा है
हाथ हमारे,
बाकी तो बस
धुंए का बादल है ...
इसीलिए कारण मत ढूंढो
बस सहज रहो,
बस अकारण प्रसन्न रहो ...
प्रसन्नता एक ऐसी
बारिश है जो बरसती है
हमारे अंतरतम से उठते
उन बादलों से जो
अकारण ही घिरते हैं...