जगजीत के बाबू सुनौ तनी,
हम सच्चिनि तुमका बतलाई।
रक्षाबंधन है मूड़े पर मुलु,
घर मा नहिंन है एकौ पाई।
अध अध किलो मिठाई के,
दुइ डेब्बा हमका लाय दियौ।
परसों जाबै नइहरे बलम,
राखिउ हमका मगवाय दियौ।
छोटकू बड़कू दून्हउ भइया,
हमरिउ राह निहारत होइहैं।
है राखी का तेउहार जउन,
स्वाचत होइहैं दिद्दा अइहैं।
लरिकन का दुइ दिन देखि लिह्यो,
हम राखी बाँधि के आय जाब।
भइया से रुपिया जो मिलिहैं,
अउतै तुमका लउटारि द्याब।
दिदिया तुम्हरेव राखी लइके,
अइहैं राखी बँधवाय लिहेव।
कुछ पइसन का करिके जुगाड़,
तुम उनहुन का निपटाय दिहेव।
पेटीकोट साड़ी बिलाउज तो,
दून्हौ जन द्याबै करिहैं।
वहिके ऊपर सौ दुइ सौ धरि,
रुपियौ हमका द्याबै करिहैं।
सौ दुइ सौ अम्मो तो द्याहैं,
सब दिन ओऊ तो देतिनि हैं।
कोंछे के चउरो मिलि जइहैं,
हमते तो कुछौ न लेतिनि हैं।
तुम्हरिउ पइसा निपटाय द्याब,
सौ दुइ सौ हमका बचि जइहैं।
चाउर पिसान जो कुछ लाउब,
कुछ दिन घर मा लरिका खइहैं।
यहु रक्षा परब है राखी का,
भइया बहिनी का प्यारु हवै।
राखी के धागन के भीतर,
बहिनी का भरा दुलारु हवै।
यहिमा बाधा अब न आवै,
तुम कइसेव काम बनाय दियौ।
जगजीत के बाबू मानि जाव,
बसि एतना काम कराय दियौ।
लेखक - इन्द्रेश भदौरिया, रायबरेली