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महर्षि भारद्वाज कृत - विमानशास्त्र - निखिलेश मिश्रा

Monday, August 17, 2020

/ by Dr Pradeep Dwivedi

निखिलेश मिश्रा

हमने यहां भारत मे पहले ही नींव रख दी थी आधुनिक हवाई जहाज की 

आधुनिक चिकित्सा के पितामह हिप्पोक्रेटस से भी पहले सुश्रुत ने शल्यचिकित्सा पर ग्रंथ लिखा हलाकि यह ग्रंथ उन्होंने नहीं लिखा था बल्कि धन्वंतरि से ज्ञान प्राप्त कर इस पद्धति को लिखा गया था जबकि धन्वंतरि का जन्म यहां ना होकर समुद्र मंथन से प्राप्त अमृत कलश से हुआ था कहा जा सकता है कि उनका जन्म आकाशगंगा में हुआ था स्पष्ट प्रतीत होता है कि सुश्रुत संहिता का ज्ञान एक परग्रही सभ्यता का ज्ञान है जो ईसा से २६०० साल पहले सुश्रुत द्वारा लिखा गया।


१८९५ में राइट ब्रदर्स की पहली कामयाब उड़ान से भी ०८ साल पहले संस्कृत के विद्वान शिवकल्पदे ने ऐसे ही एक विमान का परीक्षण किया था जिसे उन्होंने प्राचीन विमान शास्त्र से मिली जानकारी के आधार पर बनाया था। उनके इस विमान का नाम था "मारुत सखा"। उन्होंने उस विमान को मुंबई के बीच पर हजारो लोगो के सामने उड़ाया था। उन्होंने अपना यान १५०० फुट की ऊँचाई तक ३० सेकेंड तक उड़ाया था जबकि राइट ब्रदर्स अपना यान १२० फुट की ऊंचाई पर सिर्फ १२ सेकेंड तक ही उड़ा सके थे।


परमाणु बम के जनक रोबर्ट ओपनह्यमर स्वतः भी भारत की श्रीमद भगवत गीता से प्रभावित थे। अपना अविष्कार करने के पूर्व उन्होंने उन संस्कृत के लेखो को अच्छी तरह से पढ़ा था।                                               


प्राचीन विमानों की दो श्रेणिया इस प्रकार थीः-


मानव निर्मित विमान,जो आधुनिक विमानों की तरह पंखों के सहायता से उडान भरते थे।


महर्षि भारद्वाज के शब्दों में पक्षियों की भांति उडने के कारण वायुयान को विमान कहते हैं।

वेगसाम्याद विमानोण्डजानामिति ।।


विमानों के प्रकार:-

शकत्युदगमविमान अर्थात विद्युत से चलने वाला विमान,

धूम्रयान(धुँआ,वाष्प आदि से चलने वाला),

अशुवाहविमान(सूर्य किरणों से चलने वाला),

शिखोदभगविमान(पारे से चलने वाला),

तारामुखविमान(चुम्बक शक्ति से चलने वाला),

मरूत्सखविमान(गैस इत्यादि से चलने वाला),

भूतवाहविमान(जल,अग्नि तथा वायु से चलने वाला)।


आश्चर्य जनक विमान,जो मानव निर्मित नहीं थे किन्तु उन का आकार प्रकार आधुनिक ‘उडन तशतरियों’ के अनुरूप है।


विमान विकास के प्राचीन ग्रन्थ


भारतीय उल्लेख प्राचीन संस्कृत भाषा में सैंकडों की संख्या में उपलब्द्ध हैं, किन्तु खेद का विषय है कि उन्हें अभी तक किसी आधुनिक भाषा में अनुवादित ही नहीं किया गया।


प्राचीन भारतीयों ने जिन विमानों का अविष्कार किया था उन्होंने विमानों की संचलन प्रणाली तथा उन की

देख भाल सम्बन्धी निर्देश भी संकलित किये थे,

जो आज भी उपलब्द्ध हैं और उन में से कुछ का अंग्रेजी में अनुवाद भी किया जा चुका है।


विमान विज्ञान विषय पर कुछ मुख्य प्राचीन ग्रन्थों का ब्योरा इस प्रकार हैः-


१. ऋगवेद- इस आदि ग्रन्थ में कम से कम २०० बार विमानों के बारे में उल्लेख है।


उन में तिमंजिला,त्रिभुज आकार के,तथा तिपहिये विमानों का उल्लेख है जिन्हे अश्विनों (वैज्ञिानिकों) ने बनाया था।

उन में साधारणतया तीन यात्री जा सकते थे।

विमानों के निर्माण के लिये स्वर्ण,रजत तथा लोह धातु का प्रयोग किया गया था तथा उन के दोनो ओर पंख होते थे।


वेदों में विमानों के कई आकार-प्रकार उल्लेखित किये गये हैं।


अहनिहोत्र विमान के दो ईंजन तथा हस्तः विमान (हाथी की शक्ल का विमान) में दो से अधिक ईंजन होते थे।


एक अन्य विमान का रुप किंग-फिशर पक्षी के अनुरूप था।


इसी प्रकार कई अन्य जीवों के रूप वाले विमान थे।


इस में कोई सन्देह नहीं कि बीसवीं सदी की तरह पहले भी मानवों ने उड़ने की प्रेरणा पक्षियों से ही ली होगी।


याता-यात के लिये ऋग वेद में जिन विमानों का उल्लेख है वह इस प्रकार है-


जल-यान – यह वायु तथा जल दोनो तलों में चल सकता है। (ऋग वेद ६.५८.३)


कारा – यह भी वायु तथा जल दोनो तलों में चल सकता है। (ऋग वेद ९.१४.१)


त्रिताला – इस विमान का आकार तिमंजिला है। (ऋग वेद ३.४.१)


त्रिचक्र रथ – यह तिपहिया विमान आकाश में उड सकता है। (ऋग वेद ४.३६.१)


वायु रथ – रथ की शकल का यह विमान गैस अथवा वायु की शक्ति से चलता है।

(ऋग वेद ५.४१.६)


विद्युत रथ – इस प्रकार का रथ विमान विद्युत की शक्ति से चलता है।

(ऋग वेद ३.१४.१).


२. यजुर्वेद में भी ऐक अन्य विमान का तथा उन की संचलन प्रणाली का उल्लेख है जिस का निर्माण जुडवा अशविन कुमार करते हैं।


३. विमानिका शास्त्र –१८७५ ईसवी में भारत के ऐक मन्दिर में विमानिका शास्त्र ग्रंथ की ऐक प्रति मिली थी।


इस ग्रन्थ को ईसा से ४०० वर्ष पूर्व का बताया जाता है तथा ऋषि भारदूाज रचित माना जाता है।


इस का अनुवाद अंग्रेज़ी भाषा में हो चुका है।


इसी ग्रंथ में पूर्व के ९७ अन्य विमानाचार्यों का वर्णन है तथा २० ऐसी कृतियों का वर्णन है जो विमानों के आकार प्रकार के बारे में विस्तरित जानकारी देते हैं।


खेद का विषय है कि इन में से कई अमूल्य कृतियाँ अब लुप्त हो चुकी हैं।


इन ग्रन्थों के विषय इस प्रकार थेः-


विमान के संचलन के बारे में जानकारी,

उडान के समय सुरक्षा सम्बन्धी जानकारी,

तुफान तथा बिजली के आघात से विमान की सुरक्षा

के उपाय,

आवश्यक्ता पडने पर साधारण ईंधन के बदले सौर ऊर्जा पर विमान को चलाना आदि।


इस से यह तथ्य भी स्पष्ट होता है कि इस विमान में ‘एन्टी ग्रेविटी’ क्षेत्र की यात्रा की क्षमता भी थी।


विमानिका शास्त्र में सौर ऊर्जा के माध्यम से विमान को उडाने के अतिरिक्त ऊर्जा को संचित रखने का विधान भी बताया गया है।


ऐक विशेष प्रकार के शीशे की आठ नलियों में सौर ऊर्जा को एकत्रित किया जाता था जिस के विधान की पूरी जानकारी लिखित है किन्तु इस में से कई भाग अभी ठीक तरह से समझे नहीं गये हैं।


इस ग्रन्थ के आठ भाग हैं जिन में विस्तरित मानचित्रों

से विमानों की बनावट के अतिरिक्त विमानों को अग्नि तथा टूटने से बचाव के तरीके भी लिखित हैं।


ग्रन्थ में ३१ उपकरणों का वर्तान्त है तथा १६ धातुओं का उल्लेख है जो विमान निर्माण में प्रयोग की जाती हैं जो विमानों के निर्माण के लिये उपयुक्त मानी गयीं हैं क्यों कि वह सभी धातुयें गर्मी सहन करने की क्षमता रखती हैं और भार में हल्की हैं।


४. यन्त्र सर्वस्वः – यह ग्रन्थ भी ऋषि भारद्वाज

रचित है।

इस के ४० भाग हैं जिन में से एक भाग ‘विमानिका प्रकरण’के आठ अध्याय,लगभग १०० विषय और ५०० सूत्र हैं जिन में विमान विज्ञान का उल्लेख है।


इस ग्रन्थ में ऋषि भारद्वाजने विमानों को तीन श्रेऩियों में विभाजित किया हैः-


अन्तरदेशीय – जो ऐक स्थान से दूसरे स्थान पर

जाते हैं।

अन्तरराष्ट्रीय – जो ऐक देश से दूसरे देश को जाते

अन्तीर्क्षय – जो ऐक ग्रह से दूसरे ग्रह तक जाते


इन में सें अति-उल्लेखलीय सैनिक विमान थे जिन की विशेषतायें विस्तार पूर्वक लिखी गयी हैं और वह अति-आधुनिक साईंस फिक्शन लेखक को भी आश्चर्य

चकित कर सकती हैं।


उदाहरणार्थ सैनिक विमानों की विशेषतायें इस प्रकार की थीं-


पूर्णतया अटूट,अग्नि से पूर्णतया सुरक्षित,तथा आवश्यक्ता पडने पर पलक झपकने मात्र समय के अन्दर ही ऐक दम से स्थिर हो जाने में सक्षम।


शत्रु से अदृष्य हो जाने की क्षमता।


शत्रुओं के विमानों में होने वाले वार्तालाप तथा अन्य ध्वनियों को सुनने में सक्षम।


शत्रु के विमान के भीतर से आने वाली आवाजों को तथा वहाँ के दृष्यों को रिकार्ड कर लेने की क्षमता।


शत्रु के विमान की दिशा तथा दशा का अनुमान लगाना और उस पर निगरानी रखना।


शत्रु के विमान के चालकों तथा यात्रियों को दीर्घ काल के लिये स्तब्द्ध कर देने की क्षमता।


निजि रुकावटों तथा स्तब्द्धता की दशा से उबरने की क्षमता।


आवश्यकता पडने पर स्वयं को नष्ट कर सकने की क्षमता।


चालकों तथा यात्रियों में मौसमानुसार अपने आप को बदल लेने की क्षमता।


स्वचालित तापमान नियन्त्रण करने की क्षमता।


हल्के तथा उष्णता ग्रहण कर सकने वाले धातुओं से निर्मित तथा आपने आकार को छोटा बडा करने,

तथा अपने चलने की आवाजों को पूर्णत्या नियन्त्रित

कर सकने में सक्षम।


विचार करने योग्य तथ्य है कि इस प्रकार का विमान अमेरिका के अति आधुनिक स्टेल्थ फाईटर और उडन तशतरी का मिश्रण ही हो सकता है।


ऋषि भारदूाज कोई आधुनिक ‘फिक्शन राईटर’ नहीं थे परन्तु ऐसे विमान की परिकल्पना करना ही आधुनिक बुद्धिजीवियों को चकित कर सकता है कि भारत के ऋषियों ने इस प्रकार के वैज्ञिानक माडल का विचार

कैसे किया।


उन्हों ने अंतरीक्ष जगत और अति-आधुनिक विमानों के बारे में लिखा जब कि विश्व के अन्य देश साधारण खेती बाड़ी का ज्ञान भी पूर्णतया हासिल नहीं कर पाये थे।


५. समरांगनः सुत्रधारा – य़ह ग्रन्थ विमानों तथा उन से सम्बन्धित सभी विषयों के बारे में जानकारी देता है।


इस के 230 पद्य विमानों के निर्माण,उडान,गति,सामान्य तथा आकस्मिक उतरान एवम पक्षियों की दुर्घटनाओं के बारे में भी उल्लेख करते हैं।


लगभग सभी वैदिक ग्रन्थों में विमानों की बनावट त्रिभुज आकार की दिखायी गयी है।


किन्तु इन ग्रन्थों में दिया गया आकार प्रकार पूर्णतया स्पष्ट और सूक्ष्म है।


कठिनाई केवल धातुओं को पहचानने में आती है।


समरांगनः सुत्रधारा के आनुसार सर्व प्रथम पाँच प्रकार के विमानों का निर्माण ब्रह्मा,विष्णु,यम,कुबेर तथा इन्द्र

के लिये किया गया था।

पश्चात अतिरिक्त विमान बनाये गये।


चार मुख्य श्रेणियों का ब्योरा इस प्रकार हैः-


रुकमा – रुकमानौकीले आकार के और स्वर्ण

रंग के थे।


सुन्दरः –सुन्दर राकेट की शक्ल तथा रजत युक्त थे।


त्रिपुरः –त्रिपुर तीन तल वाले थे।


शकुनः – शकुनः का आकार पक्षी के जैसा था।


दस अध्याय संलग्नित विषयों पर लिखे गये हैं जैसे कि विमान चालकों का परिशिक्षण,उडान के मार्ग,विमानों के कल-पुरज़े,उपकरण,चालकों एवम यात्रियों के परिधान तथा लम्बी विमान यात्रा के समय भोजन किस प्रकार का होना चाहिये।


ग्रन्थ में धातुओं को साफ करने की विधि,उस के

लिये प्रयोग करने वाले द्रव्य,अम्ल जैसे कि नींबु

अथवा सेब या कोई अन्य रसायन,विमान में प्रयोग

किये जाने वाले तेल तथा तापमान आदि के विषयों

पर भी लिखा गया है।


सात प्रकार के ईजनों का वर्णन किया गया है तथा उन का किस विशिष्ट उद्देष्य के लिये प्रयोग करना चाहिये तथा कितनी ऊचाई पर उस का प्रयोग सफल और

उत्तम होगा।


सारांश यह कि प्रत्येक विषय पर तकनीकी और प्रयोगात्मक जानकारी उपलब्द्ध है।


विमान आधुनिक हेलीकोपटरों की तरह सीधे ऊची उडान भरने तथा उतरने के लिये,आगे पीछ तथा

तिरछा चलने में भी सक्ष्म बताये गये हैं।


६. कथा सरित-सागर – यह ग्रन्थ उच्च कोटि के श्रमिकों का उल्लेख करता है जैसे कि काष्ठ का काम करने वाले जिन्हें राज्यधर और प्राणधर कहा जाता था।


यह समुद्र पार करने के लिये भी रथों का निर्माण करते थे तथा एक सहस्त्र यात्रियों को ले कर उडने वालो विमानों को बना सकते थे।

यह रथ-विमान मन की गति के समान चलते थे।


कौटिल्य के अर्थ शास्त्र में अन्य कारीगरों के अतिरिक्त सोविकाओं का उल्लेख है जो विमानों को आकाश में उडाते थे ।


कौटिल्य ने उन के लिये विशिष्ट शब्द आकाश युद्धिनाह का प्रयोग किया है जिस का अर्थ है आकाश में युद्ध करने वाला (फाईटर-पायलेट) आकाश रथ,चाहे वह किसी भी आकार के हों का उल्लेख सम्राट अशोक के आलेखों में भी किया गया है जो उसके काल 256-237 ईसा पूर्व में लगाये गये थे।


उपरोक्त तथ्यों को केवल कोरी कल्पना कह कर नकारा नहीं जा सकता क्यों कल्पना को भी आधार के लिये किसी ठोस धरातल की जरूरत होती है।


पुष्पक विमान और रामायण

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कहा जाता हैं पुरातन काल में विज्ञान अपने चरम पर था जब राम जैसे महापुरुष इस धरती पर अवतरित हुए। यदि आपने रामायण पढ़ा होगा तो पुष्पक विमान के बारें में जरूर सुना होगा जिसे रावण ने सीताहरण के लिए इस्तेमाल किया था। बाद में यही पुष्पक विमान विभीषण द्वारा श्री राम को अयोध्या जाने के लिए दिया गया। पुष्पक विमान की विशेषताओं को रामायण के कई श्लोक में समझाया गया हैं ।


१. पुष्पक विमान हवा में उड़ने वाला विमान था जो चलाने वाले के दिमाग़ से कंट्रोल किया जाता था।


कांचनम्रथम्आस्थायकामगम्रत्नभूषितम् |


पिशाचवदनैःयुक्तम्खरैःकनकभूषणैः || ३-३५-६


मेघप्रतिमनादेनसतेनधनदअनुजः |


राक्षसाधिपतिःश्रीमान्ययौनदनदीपतिम् || ३-३५-७


ऐसा रथ जो की सोनें के आभूषणों से सजा हैं, रथ के पहिए भव्य हैं और रथ को ख़ीचने वाले वाहक अति विशाल, जो रथ को चलाने वाले की इच्छानुसार चलते हैं । इसमें बैठने वाला बादलों की रफ़्तार से गर्जना करते हुए चलता हैं । इस रथ पर सवार कुबेर का भाई रावण जो की राक्षशों का राजा हैं समुद्र की ओर जाता हैं।


(“That chariot which is decorated with golden ornaments, yoked with monster-faced mules that have gem studded trappings is ride-able by the wish of the rider, and sitting in such a chariot which is wholly golden and which rides with a sound like the pealing of thunder, that celebrated Ravan, the brother of Kuber and the lord of demons, traveled towards the lord of rivers and rivulets, namely the ocean.”So , Pushpaka vimana was an aerial vehicle that was controlled by thought to travel anywhere across the earth.)


२. बैठने के लिए अनंत जगह थी


प्रियाअत्प्रियतरंलब्धंयदहंससुहृज्जनः | ६-१२२-२२


सर्वैर्भवद्भिःसहितःप्रीतिंलप्स्येपुरींगतः ||


इस विमान की सबसे बड़ी ख़ासियत यह थी कि इसमें सीट की संख्या हमेशा बैठने वालों से एक अधिक होती थीं । मान लीजिए विमान में बैठने वालों की संख्या १००० हैं तो यह विमान की डिज़ाइन के अनुसार बैठने की जगह १००१ होगी।


(One of its special qualities was its adjustable seating capacity. Number of seats in pushpaka vimana was +1 the number of passengers. So if the pilot thinks of boarding 100 passengers, then pushpaka vimana would rearrange its layout to accommodate 101 passengers. Irrespective of the number of passengers, there would be always one seat vacant in pushpak vimana.)


३. वायु से भी तीव्र गति वाला


आजकल जितने भी विमान यात्रियों के लिए बनाए जाते हैं उनकी अधिकतम स्पीड 500 से 600 के बीच होती हैं । हालाँकि दिए गये श्लोक में विमान की गति नही बतायी गयी हैं पर ऐसा अनुमानित हैं की इसकी गति आज के विमनो से कई गुना अधिक थी ।


(EXTRAORDINARY MAXIMUM SPEED AT MAXIMUM ALTITUDE

Pushpaka vimana had the maximum greater than “speed of wind” and maximum altitude that made the ocean look like a swimming pool.


Normally, jet planes travels at 500 to 600 miles per hour but Lord Rama Pushpaka vimana was no doubt faster than this. Though the exact travel time cannot be calculated from verses, pushpaka vimana travelled the distance of 2500+ miles between Sri lanka and India within few hours.

Traveling on air, Lord rama was able to see the entire lanka with many airplanes and airports. As they flied to ayodhya from lanka, lord rama tells Lakshmana)


४. विमान कई तलों में विभाजित था


रामायण में दिए गये व्याख्यान में इसकी डिज़ाइन के बारें में जानकारी नही हैं लेकिन विमान शास्त्र में इससे मिलती जुलती डिज़ाइन के बारे में बात की गयी हैं ।


(MULTI-STORIED SAUCER SHAPED DESIGN


From the accurate description laid out in Ramayana it is very difficult to envision the actual design of this aerial vehicle. Design of pushpaka vimana somewhat closely resembles Nasa spacecraft vehicle ‘Dragon’ except that it was much bigger in size. Pushpaka vimana was a double decker circular aircraft with a central dome similar to 20th century flying saucer. Yellowish white liquid similar to gold was used as a fuel to drive Pushpaka vimana)

                                                                            

क्या विश्व में अन्य किसी देश के साहित्य में इस विषयों पर प्राचीन ग्रंथ हैं ?


प्रस्तुत लेख हेतु बाह्य श्रोतों का यथास्थान उपयोग किया गया है।

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