अंत में हम दोनों ही रह जाएंगे,
हां जिम्मेदारियां, उलझने, ख्वाहिशों
की पूर्ति करते करते,
हम दोनों ही रह जाएंगे।
भले ही झगड़े, गुस्सा करें,
एक दूसरे से कभी-कभी बिल्कुल भी बात ना करें,
मगर अंत में हक तो
एक दूसरे पर हम दोनों ही जताते रह जाएंगे।
रिटायरमेंट के बाद,
सुबह शाम की चाय पीने के लिए
सिर्फ हम दोनों ही आँगन में साथ बैठे रह जाएंगे।
जाडे़ के समय जब जोड़ों में दर्द उठेगा
तब हम दोनों ही एक दूसरे को
बाम लगाने के लिए रह जाएंगे।
आंखों से धुँधला जब दिखने लगेगा,
याददाश्त कमजोर सी जब होने लगेगी,
तब एक दूसरे को आवाज देकर ढूंढने के लिए
हम दोनों ही रह जाएंगे।
हां डाइनिंग टेबल पर
थाली में दाल रोटी परोस कर
साथ में खाना खाने के लिए
हम दोनों ही बैठे होंगे।
गर बीमार हुआ कोई हम दोनों में से,
तब एक दूसरे का ख्याल, हिम्मत और दिलासा देने
के लिए हम दोनों ही एक दूसरे के पास होंगे।
साथ जब छूटने लगेगा,
दोनों में से पहले किसी एक का
तो अकेले छोड़ जाने का दर्द सहने,
बिछड़ने के लिए माफी हम एक दूसरे से मांगेंगे।
और यदी साथ साथ चले
इस संसार को छोड़कर हम दोनों,
तब मरने का जश्न भी हम एक साथ मनाऐंगे।
हां अंतिम विदाई के समय में,
आखरी सांसो पर,
तब एक दूसरे को अंतिम बार
गले लगाने के लिए
हां, सिर्फ तुम और मैं ही होंगे।
जीवन भर इस पवित्र रिश्ते को साथ निभा कर
और बिना किसी तीसरे शक्स को दखल देने
का मौका देकर हम दोनों,
सुकून से एक दूसरे के प्रति अपार " प्रेम" पाकर
इस संसार को अलविदा कर जाऐंगे..।।
लेखिका - दिव्या सक्सेना
इंदौर
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