अनुपम मिठास कौरा ( टोरंटो, कनाडा)
हुआ ख़त्म अँधेरा छाया उजाला है
उम्मीदों ने मायूसी को मिटा डाला है।
रोशन हो गए चिराग़ उम्मीदों के
होंसलों को दिल में जिसने पाला है।
सुबह वक़्त पे जो नहीं उठते
क़िस्मत पे लगा उनके ताला है।
रखिए खुदा और ख़ुद पे यक़ीन
कोशिशों ने हार को जीत बना डाला हैं ।
चेहरा नहीं दिल ख़ूबसूरत चाहिए
नहीं भाता वो जिसका दिल काला है।
दुश्मन भी दोस्त बनाना चाहे जिसे
‘ मिठास ‘ होता वो बहुत क़िस्मत वाला है।
No comments
Post a Comment