अपर्णा भटनागर (दिल्ली)
तुझे गुनगुनाता हूं।
गीत तेरे गाता हूं।।
आंखों में प्रचंड जोत,
तेज मुख के ओत प्रोत,
बॉहों में अदम्य जोश,
ऐसी शक्तिशाली शख्सियत को भूल नहीं पाता हूं....
गीत तेरे गाता हूं।।
अटल थी तेरी पुकार,
मानो सिंह की दहाड़,
अडिग मन जैसे पहाड़,
ऐसी निर्भयी शख्सियत को भूल नहीं पाता हूं।
गीत तेरे गाता हूं।।
सद्कर्मो में आसक्त तुम,
उसूलों से सशक्त तुम,
प्रेमी देश भक्त तुम,
ऐसी सभ्यता की शख्सियत को भूल नहीं पाता हूं।
गीत तेरे गाता हूं।।
स्वर्णिम युग का वो सितारा,
नहीं किसी से कभी वो हारा,
ह्रदय में गीतों की धारा,
कला की ऐसी शख्सियत को भूल नहीं पाता हूं।
गीत तेरे गाता हूं।।
जन जन का सम्मान लिए,
जीवन का पल पल जिए,
ठिठक गई वो भी एक पल,
जब मौत से मिला किए।
ऐसी प्रेमी शख्सियत को भूल नहीं पाता हूं।
तुझे गुनगुनाता हूं।
गीत तेरे गाता हूं।।
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