आचार्य डॉ प्रदीप द्विवेदी
वरिष्ठ सम्पादक - इंडेविन टाइम्स समाचार पत्र
शास्त्रों में श्री कृष्ण जन्माष्टमी को दो प्रकार से माना गया है- पहली जम्माष्टमी, दूसरी जयंती।
जन्माष्टमी- यह अष्टमी वह है जो अर्धरात्रि में प्राप्त होती है।
जयंती - इसमे अष्टमी तिथि एवं रोहिणी नक्षत्र दोनो का संयोग मिलता है, इसे जयंती योग वाली अष्टमी कहते है।
इस वर्ष 11 अगस्त को अर्धरात्रि में अष्टमी तिथि तो मिल रही है किंतु रोहिणी नक्षत्र नही है। दूसरे दिन 12 अगस्त को भी ओदयिक अष्टमी दिन में 8 बजे तक ही है। दोनो दिन रोहिणी का संयोग नही मिल रहा है।
ऐसी स्तिथि में शास्त्र कहता है - दिवा व यदि व रात्रो नास्ति चंद्र रोहिणी कला। रात्रि युक्ता प्रकुर्वीत विशेषणे न्दू संयुताम।
अर्थात दिन या रात में कलामात्र भी रोहिणी न हो तो विशेषकर चंद्रमा से मिली हुई रात्रि में श्री कृष्ण जन्माष्टमी को व्रत पूजन के साथ मनाना चाहिए। अतः 11 अगस्त मंगलवार को चंद्रोदय रात्रि 11:21 पर हो रहा है। इस प्रकार अर्धरात्रि व्यापिनी चंद्रकलाओ से युक्त अष्टमी तिथि को ही प्रमुखता दी जाएगी।
नोट - गृहस्थों के लिए जन्माष्टमी 11 को रहेगी व सन्यासियों के लिए 12 अगस्त को।
राधेकृष्णा प्रदीप जी आपने बहुत अच्छी जानकारी दी
ReplyDeleteआप सभी को भी श्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं।
ReplyDeleteकञ्च जी हमेशा सुखी बनाये रखें आप सभी को।