रीता पंकज शुक्ला,सौम्या लखनवी
अरे कुकुरौना रोटी लेइगा,
रसोइया के किवाड़ खोलिके,
कुकुरौना रोटी लेइगा,
बप्पा उठ लाठी भाजिन,
पीठ हमरी भतुर डारिन,
समझमा हमरी कुछो न आवै,
कौनी तई मारिन टूरिन
आगे आगे हम भागेन,
पाछे पाछे बप्पा भागें,
यह कौन बला सिर पर आई,
यह बात न हमरी समझ आयी,
अम्मा तबही बोली परी,
अब काहे वहिके पाछे परेव,
बप्पा गुस्सा मा बोलि परे
यो तुम्हरा जो पूत हवे,
हमरी टोपी उठवाये दिहिस,
टुकुर टुकुर ताकत रहिगा,
न रोकिस न टोकीस,
अम्मा हमरी कइती घूरिन,
हमते वहू पूछा चहिंन,
बप्पा की टोपी लेइगा,
काहे नाही छडाये रहों,
हम कहा,
वह टोपी नही रोटी रहे,
अरे कुकुरौन रोटी लेइगा,
यहे हम कहा रहे,
बप्पा हमरे पीछे परिगे,
मारि हमका तूरि डारिन,
रोटी बोलै टोपी सुनिन,
भाड़ मा जाए,
हम तो भर पाइन।
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