निखिलेश मिश्रा, लखनऊ
इसके प्रत्येक स्तंभ को बनाने मे छ छ महीने लगे थे, निर्माण काशी नरेश नरनारायण की पत्नीने करवाया था। मंदिर के पिछले हिस्से मे एक दरवाजा है जिसकी नक्काशियो को देखकर उसे लकडी का दरवाजा मान बैठेगे पर वह पत्थरका बना है।
दरअसल, भगवती के इस दरबार का काशिराज महाराज प्रभु नारायण सिंह की माता जी ने संवत् 1943 में कराया था। इसमें पंचदेव की स्थापना के साथ ही शिवपरिवार समेत नंदी को भी विराजमान कराया गया था। निर्माण से संबंधित शिलापट्ट भी परिसर में विद्यमान है। कहा जाता है इसके एक-एक पिलर बनाने में छह माह का समय लगा।
इसके पीछे कथा है कि वर्तमान पुजारी परिवार की पांच पीढ़ी पहले दामोदर झा भगवती के साधक थे। वर्ष 1840 में तीर्थाटन के लिए निकलते तो रामनगर पहुंचे जहां सूखा पड़ा हुआ था। तत्कालीन महाराज ईश्वरी नारायण सिंह से लोगों ने भगवती साधक के नगर में आने की सूचना दी। व्यथा-कथा सुनने पर पं. दामोदर झा ने बारिश होने का भरोसा तो दिया ही समय भी बता दिया। तद्नुसार ही वर्षा हुई और अभिभूत महाराज ने उत्तराधिकारी से संबंधित अपनी चिंता से भगवती साधक को अवगत कराया।
पं. दामोदर झा ने बेबाकी से कहा कि-घर में पता करिए संतान है। पूछताछ करने पर पता चला छोटे भाई की पत्नी गर्भ से हैैं। चकित महाराज ने भगवती साधक को रामनगर में ही ठहर जाने का आग्रह किया। खुद को देवी साधक बताने और काशी क्षेत्र में ही ठहरने की इच्छा जताने पर गोदौलिया पर पहले से बन रहे मंदिर में ठहराया गया। परिवार में बालक का जन्म होने के बाद मंदिर में भगवती की स्थापना की गई।
फिलहाल दामोदर झा की पांचवीं पीढ़ी के प. अमरनाथ झा आज पूजन अर्चन की जिम्मेदारी निभाते हैैं। दर्शन पूजन के लिए राज परिवार के लोग अभी भी आते हैैं।
काली मंदिर से सटे छोटे से कक्ष में गौतमेश्वर महादेव विराजमान हैैं। जनश्रुतियों के अनुसार आदि काल में यह गौतम ऋषि का आश्रम था। ऋषि ने महादेव की स्थापना कर पूजन किया। हालांकि शिवलिंग को स्वयंभू भी कहा जाता है। कथा के अनुसार यह एक नवाब का स्थान हुआ करता था। भगवान ने स्वप्न में काशिराज को अपनी पीड़ा बताई। इसे लेकर मामला न्यायालय में भी चला। बाद में नवाब परिवार खत्म हो गया और गौतमेश्वर महादेव का स्वरूप निखर कर सामने आया।
मंदिर के हर हिस्से की बनावट का खास ध्यान रखा गया है। इसका प्रमाण मंदिर के अगल.बगल और पीछे का हिस्सा है। इस हिस्से पर दरवाजे का आकार बना है जो हुबहू लकड़ी के दरवाजे सा प्रतीत होता है। लेकिन यह लकड़ी का दरवाजा न होकर पत्थर पर नक्काशी का बेहतरीन नमूना है। पत्थर पर त्रिस्तरीय निर्माण किया गया है। इसकी भित्ती पर शंखनुमा आकृति बनी हुई है। मंदिर की दीवारों पर छोटे.छोटे मंदिरए घण्टे सहित अन्य आकृतियों को बड़ी ही बारीकी से उभारा गया है।
मंदिर सुबह पांच बजे खुलता है इसी दौरान आरती होती है। दिन में 11 बजे मंदिर का गर्भगृह बंद हो जाता है फिर पुनः शाम चार बजे खुलता है जो रात आठ बजे शयन आरती तक खुला रहता है। महाशिवरात्रि के दिन मंदिर में कार्यक्रम आयोजित होता है।
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