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मन से मन का जोड़ के धागा - विनीता मिश्रा

Thursday, September 3, 2020

/ by Dr Pradeep Dwivedi

विनीता मिश्रा, लखनऊ

 मै प्रेम बना 

तुझमें बहता रहता हूं।

सांसों की लय में

विचरण करता रहता हूं।।

पवन सा मुक्त

जल सा उन्मुक्त

आनंद से युक्त

मैं तुझमें बहता रहता हूं।।

मन से मन का जोड़ के धागा

तोड के बंधन काया का ,

विचार सृजन सब करता हूं।

मैं तुझमें बहता रहता हूं।।

अन्धकार की राहों में

कोई अवरोध न उत्पन्न हो।

जल - थल - नभ न कोई रहे 

न क्षिती में कोई पवन बहे ।

आकार- विकार न कोई रहे ,

निर्विकार संबंध रहे ।

मन- प्राण कहां तक पहुंचेंगे?

मै उनके आगे रहता हूं।

मै तुझमें बहता रहता हूं।।

अब न शब्दों की माला है

न शीत ताप की ज्वाला है।

निर्विकल्प हुआ है जब से तू

संकल्प सा तुझमें रहता हूं।

मै तुझमें बहता रहता हूं।।

दृश्य - अदृश्य सब मिथ्या है

माया - सृष्टि का काम नहीं।

जब मैं तुझमें बह निकला

किसी का कोई काम नहीं।।

भय - क्षोभ भी तेरे हरता हूं

सांसों की लय में 

विचरण सा करता रहता हूं।

मै प्रेम बना 

तुझमें बहता रहता हूं।।


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