कुमारी अर्चना 'बिट्टू'
पूर्णियाँ,बिहार
"वो उपर से पुरुष है अंदर से स्त्री"
वो खुद को पुरुष समझती है
लिंग तो स्त्री का मिला है
पर वो खुद को पुरूष समझती है
घर में चारों बहने ही है
पिता ने छोटी बेटी को
बेटे जैसा ही पाला है
संस्कार भी लड़को सा दिया
बिना डरे कहीं भी
बेहिचक बोलनेऔर हँसने का
कपड़ें लड़को की तरह पहने का
टी-सर्ट,पेंट,जूता व मौजां
बाल लड़को की तरह
छोटे छोटे ही रखना की
अँगूलियों से सिर पर
दो चार बार हाथ फेरों
हो गई मस्त सी कंघी।......
लड़कियों को तो घंटो लगते है
कहीं भी आने जाने में
पर आखिर है तो लड़की
कितना भी जिम करें
पहने ढीले ढाले कपड़ें
पर स्तनों का कैसे छुपा पाएगी
उभर ही आएगें जब वो जवाँ होगी! ......
माँ बाप बेटा पैदा न की सजा
कुछ बेटियों को भुगतनी पड़ती है
वो न बेटा ही बनती है और
न ही बेटी ही रह पाती है
बेटी के उसी रूप में अस्वीकृति
कहीं न कहीं सामाजिक असुरक्षा है
अपने झूठे अहम में स्त्री को
दोयम दर्जा का समझना मात्र है.......
किसी को भी उसके प्रकृति
रूप में जीने का पूरा हक़ है
चाहे वो स्त्री हो या पुरूष
चाहे नपुंसक लिंग क्यों न हो
जब तक वो आपना खुद
लिंग परिवर्तन न करवाये
दूसरे के लिंग में जीने के लिए
किसी को विवश न किया जाए।