आर्यावर्ती सरोज"आर्या"
लखनऊ (उत्तर प्रदेश)
दूर तलक...
तेरे इंतज़ार के सिवा कुछ भी नहीं
सूनी और सरपट राहें.....
तेरे आने की काल्पनिक चित्र खिंचती है
और फिर कहीं, शून्य में विलीन हो जाती
न रास्ते खत्म होते हैं और ना ही तेरी प्रतीक्षा
जीवन पर्यन्त चलती रहेगी... पृथ्वी की भांति
तेरे इर्द- गिर्द , तुझमें समाहित होने को आकांक्षी
तेरी तपन और रोशनी मुझमें समाहित है......
तू सूर्य की भांति ज्वलनशील है.... और.. मैं ..!
पृथ्वी की मानिंद.....! तथापि मेरी हरितिमाएं
ऊध्वर्मुखी हो निहारती रहती तुम्हें.....
तिरोहित कर सारे उपालंभ, अवहेलनाएं
वियुक्ता बन बैठी,आत्मतोष कर...
किसी गंधोदक , पुष्प वारि सी स्मिति
अंधेरों पर फिसल कर दूर छिटक जाती
बरबस ही घेर लेती है संतप्त वेदना
वेगशाली शूल सम हृदय को वेधित करती
औचक सहस्र स्मृतियां धूमिल पड़ जाती
दूर तक दृष्टिगत होती हृदय सी........
......सूनी राहें.......!!!