नीता अनामिका ( कोलकाता)
हे सखी,
यही स्वरूप है तुम्हारा..
सखी नाम से सही रूप में
सुरभित हो तुम..
जब भी तुम्हें सखी बोलता हूँ
सुख और अपनेपन के भाव से
सराबोर हो उठता हूँ.....
जानती हो
तुम्हारा कौन सा रूप
मुझे सबसे प्रिय है..???
यही कि
जब भी तुम वृहत्त रूप ले
सम्पूर्ण अभिमान के साथ
निस्वार्थ भाव से
अपना विस्तार कहती हो....
तब मैं अभिभूत सा
तुम्हारे शब्दों के आभामंडल में
और भी गर्वित हो उठता हूँ....
निःशब्द हूँ मैं
तुम्हारे निस्वार्थता के अभिमान पर..
तुम्हारी सार्थकता
अद्भुत और आदित्य है..
ईश्वरी स्नेह का विशाल रूप हो तुम..
तुम्हारी मुस्कान
संसार के समस्त दुखों को
हरने वाला ईश्वरीय दर्शन के समान है...
तुम्हारे व्यक्तिव का निखार
चुम्बकीय है..
तुम्हारी ऊर्जा
तुम्हारा स्वाभिमान
तुम्हारी अस्मिता
सब समा जाता है इनमे...
तुम हो विलक्षण ईश्वरीय नगीना..
और इस धरती पर सखी रूप में
मेरा अभिमान.....