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खजुराहो के कंदरिया महादेव - निखिलेश मिश्रा

Tuesday, September 1, 2020

/ by Dr Pradeep Dwivedi

निखिलेश मिश्रा, लखनऊ

खजुराहो के मंदिरों में सबसे विशाल कंदरिया महादेव मंदिर मूलतः शिव मंदिर है। मंदिर का निर्माणकाल ९९९ सन् ई. है। स्थानीय मत के अनुसार इसका कंदरिया नामांकरण, भगवान शिव के एक नाम कंदर्पी के अनुसार हुआ है। इसी कंदर्पी से कंडर्पी शब्द का विकास हुआ, जो कालांतर में कंदरिया में परिवर्तित हो गया।

यह विशाल मंदिर खजुराहो की वास्तुकला का एक आदर्श नमूना है। यह अपने बाह्य आकार में ८४ समरस आकृति के छोटे- छोटे अंग तथा श्रंग शिखरों में जोड़कर बनाया, अनूठे उच्च शिखर से युक्त हे। मंदिर अपने अलंकरण एवं विशेष लय के कारण दर्शनीय है। मंदिर भव्य आकृति और अनुपातिक सुडौलता, उत्कृष्ट शिल्पसज्जा और वास्तु रचना के कारण मध्य भारतीय वास्तुकृतियों में श्रेष्ठ माना जाता है। मुख्य मंडप, मंडप और महामंडप के साथ साथ इसका आधार-योजना, रुप, ऊँचाई, उठाव, अलंकरण तथा आकार शास्रीय पद्धति का उत्तम उदाहरण प्रस्तुत करता है। 

इसकी विशिष्टता यह भी है कि इसकी ऊँचाई की ओर जाते हुए उत्थान श्रंग अत्यंत प्रभावशाली प्रतीत होता है। खजुराहो का यह एक मात्र मंदिर है, जिसकी जगती के दोनों पार्श्वों में और पीछे प्रक्षेपण है। इसकी जगती लगभग तीन मीटर ऊँची है। इसकी धराशिला ग्रेनाईट पत्थर की है तथा इस पर रेतीले पत्थर की खार-शिलाएँ बनी हुई हैं। मंदिर भित्ति कमल पुष्प की पत्तियों से सजे हैं तथा जालय, कुंभ और बाहर को निकली पट्टिकाएँ तमाल पत्रों से सजी हुई हैं। मंदिर ऊँचे अधिस्थान पर स्थापित है, जिसपर अनेक सुसज्जित मूर्तियाँ हैं।

इन मूर्तियों में दो पंक्तियाँ, हाथियों, घोड़ों, योद्धाओं, शिकारियों, मदारियों, संगीतज्ञों, नर्तकों और भक्तों की मूर्तियाँ आसीन है। मंदिर की तीन पट्टियों में देवी- देवताओं, सुर सुंदरियों, मिथुनों, व्यालों और नागिनों की मूर्तियाँ हैं। मंदिर के भीतर दो मकर-तोरण है। अप्सराओं की प्रतिमाएँ सुंदरता के साथ अंकित की गयी है। यहाँ की सभी मूर्तियाँ लंबी हैं तथा आकृति में संतुलित प्रतीत होती है। यहाँ नारी के कटावों का सौंदर्य स्पष्ट दिखता है।

तलच्छंद और ऊर्ध्वच्छंद के प्रत्येक अंगों की रचना और इसका अलंकरण अद्वितीय है। उर्ध्वच्छंद में सबसे अधिक लयबद्ध प्रक्षेपणों और रथिकाओं के सहित इसकी दांतेदार योजना उल्लेखनीय है।

मंदिर का प्रवेश द्वार पंचायतन शैली का बना हुआ है। इस पर विषाणयुक्त और समुज्जवल देवताओं और संगीतज्ञों इत्यादि से अलंकृत तोरण तथा भव्य ज्यतोरण देखने योग्य हैं। अर्द्धमंडप और मंडप के उत्कीर्ण सघन हैं। परिक्रमा क्षेत्र में बाहरी भित्ती पर वृहदाकार मंच है। परिक्रमा के बाहर तथा मंदिर के बाहर का मंच बलिष्ट और गहन आकार में उठाया गया है। मंदिर का प्रत्येक भाग एक- दूसरे से जुड़ा हुआ है और पूर्व- पश्चिम दिशा की ओर इसका विस्तार है। छज्जों के रूप में वातायन बनाकर मंडप को महामंडप बनाया गया है। 

भीतर हवा जाने के लिए वातायन है और मंडप तीन ओर से खुले हैं। मंदिर की दीवारें पुख्ता हैं तथा छज्जायुक्त वातायन है, जो रोशनी जाने का साधन है। मूर्तियाँ छज्जे से ही शुरु हो जाती है। छज्जे और वातायन मूर्तियों पर रोशनी और परछाइयाँ पड़ती है। मंदिर का गर्भगृह सर्वोच्च स्थान पर है। वहाँ पहुँचने के लिए चंद्रशिलायुक्त सीढियों से ऊपर चढ़ना पड़ता है। सप्तरथ गर्भगृह के साथ ही शिखर के नीचे के वर्गाकार भाग को भी सात भाग दिये गए हैं।

कंदिरिया मंदिर की जंघा पर मंडप और मुखमंडप के बाहरी भाग के कक्षासन्न पर राजसेना, वेदिका कलक, आसन्नपट्ट, कक्षासन्न है। मंदिर का छत कपोत भाग से शुरु होता है तथा व्रंदिका से छत को उठाता गया है। मंदिर के प्रत्येक मंडप की अलग- अलग छत है। सर्वाधिक ऊँचाईवाली छत गर्भगृह की है तथा इसका अंत सबसे ऊँचे शिखर पर हुआ है। यह शिखर चार उरु: शिखरों से सजाया गया है तथा असंख्य छोटे- छोटे श्रृंग भी बनाये गए हैं। इनमें कर्णश्रृंग तथा नष्टश्रृंग प्रकृति के श्रृंग हैं। 

मूलमंजरी के मुख्य आधार पर चतुरंग के रथ, नंदिका, प्रतिहार और कर्ण अंकित किये गए हैं। मंदिर के महामंडप की छत डोमाकार है, जिसे छोटे- छोटे तिलकों (पिरामिड छतों) से बनाया गया है। इससे ॠंग शैली स्पष्ट दिखाई देती है। प्रथम छत चार तिलकों से बनी है। साथ- ही तिलकों की चार अन्य पंक्तियाँ भी पिरामिड आकार में दिखाई देती हैं। उत्तर- दक्षिण की छत पर पाँच सिंहकरण, कुट- घंटा से उठ कर छत को सजाते हैं। यह छत पीठ और गृवा से युक्त है तथा इसको चंद्रिका, कलश और बीजपुंक से अलंकृत किया गया है।

मुख्यमंडप चार भद्रक- स्तंभों पर बनाया गया है। इसका ऊपरी आधा भाग आसन्न प के ऊपर है तथा नीचे का आधा भाग आसन्नप के नीचे स्थित है। इस भाग को कमलों से सजाया गया है। मंडप से मंडप तक आने के लिए मकरतोरण है। मुख्य मकरतोरण से शिल्पशैली पूर्णतया मिलती है। गर्भगृह के दरवाजे पर चंद्रशिला की चार सीढियाँ हैं। दरवाजे पर नौ शाख हैं। इसका विवरण निम्नलिखित है :-

प्रथम शाखा पर साधारण उत्कीर्ण हैं।

द्वितीय पर अप्सराएँ हैं।

तृतीय पर व्याल है।

चतुर्थ पर मिथुन है।

पंचम पर व्याल आसीन है।

छठी पर सुंदर अप्सराएँ अंकित हैं।

सप्तम साधारण उत्कीर्ण है।

अष्टम पर कमल पत्र का अंकन किया गया है।

नवीं शाखा पर लहरदार लकीरें और नाग रुपांकिंत है।

सभी रथिकाएँ उद्गमों से सुसज्जित है। दाहिनी शाख पर कमल- पत्र और बायीं ओर यमुना अंकित किया गया है। द्वार शिला की एक रथिका सरस्वती को अभय के साथ प्रदर्शित करती है। यहाँ सरस्वती चक्रदार कमल दंड और कमंडल भी धारण किये हुए हैं। स्तंभ शाखा के नीचे रथिका में शिव- पार्वती को बैठे दिखाया गया है और नाग रथिका के नीचे की रथिका, चार व्यक्तियों को आसीन किया गया है। भीतरी वितान में कमल पुष्प और कोनों में कीर्कित्त मुख प्रतिमाएँ हैं। रेतीले पत्थर की एक पीठिका पत्थर के शिवलिंग को सहारा देती दिखाई गई है।

मंदिर का गर्भगृह चतुरंग है तथा ऊँचे अधिस्थान पर टिका हुआ है। उत्तर प पर हाथी, घोड़े, आदमी और विविध दृश्य मिथुन सहित अंकित है। यहाँ वेदीवंघ पर जंघा है, जिसपर दो पंक्तियों में मूर्तियाँ हैं। यहाँ देवता, अप्सराएँ, व्याल और मिथुन- युग्म अंकन सुंदरता के साथ किया गया है।

कंदरिया महादेव मंदिर संधार प्रासाद में निर्मित है। इसमें एक शार्दूल सामने हैं और एक कोने में। इसकी पीठ की ऊँचाई काफी ज्यादा है। मंदिर का मुखपूर्व की ओर है। सीढियाँ चौड़ी हैं तथा मुखचतुष्कि तक जाती है। मुखचतुष्कि बंदनमालिका सुंदर है।


प्रस्तुत लेख हेतु बाह्य श्रोतों का यथास्थान उपयोग किया गया है।

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