सोनल उमाकांत बादल (फ़रीदाबाद)
चाहिए बस इक साथ तुम्हारा
नहीं अपमान भरे शब्द और तेवर
व्यर्थ सभी होजाएंगे अनमोल हों चाहे कितने दिए गए तुम्हारे द्वारा उपहार सभी "गहने और ज़ेवर" .......
देना बस सम्मान ज़रा सा
उतने में ही ख़ुश होजाऊंगी
होकर समर्पित इस रिश्ते की
शायद मैं भी क़दर कर पाऊँगी
बनकर दासी जीवन भर मैं
सेवा कर प्यार लुटाउंगी
दिल में दबे जस्बातों को
कैसे तुमसे कह पाऊँगी
तिरस्कार अपमान भरे
तुम्हारे व्यवहार को सह न पाऊँगी
रखोगे जिस हाल में मुझको
वैसे रहती जाउंगी
सांसे लुंगी घुटन भरी और
अंदर ही अंदर मर जाउंगी
सी लुंगी होंठो को अपने
तोड़ दूंगी जीवन के सपने
बयां करुँ किसको मन अपना
तुम ही तो हो इक अपने
नहीं करीं शिकायतें दिल ने
न शब्द ही बोले कभी मुखने
दबा दिए सब दर्द भी हमने
जब भी लगा दिल ये दुखने
समझ सको गर प्यार ही न मेरा
जो गर पढ़ न सको मेरा मन
नहीं सार ऐसे रिश्तों का
हैं व्यर्थ सभी वो बंधन
नहीं दमकती है काया वो
न ही लागे है वो सुन्दर तन
पहनालो चाहे कितने ही
हीरों के स्वर्ण जड़ित आभूषन
शब्द कठोर तीखी हो वाणी
गर अपमान पड़े जब सहने
सोना भी कोयला सा लागे
व्यर्थ लगें अनमोल सभी गहने ........
प्यार भरे मीठे से शब्द ही
मुझसे जो बोलपाओगे
जैसी भी जीवन संगिनी हूँ तुम्हारी
क्या उसी रूप में तुम अपनाओगे
मिलकर चलोगे जो सँग साथ तो
जीवन के सुनहरे सपने सजाओगे
बनकर कोयल सी मधुर संगीत स्वर
तुम सँग मुझे चहकता पाओगे
पता नहीं है तुमको शायद ये
अनमोल मुझे सुख दे जाओगे
बनकर जीवन साथी मेरे
सदा ही साथ निभाना
बनकर खुशियां मेरे जीवन की
सँग मेरे यूँ ही साथ बिताना
इच्छाओं को अपनी तुमसे
नहीं आता है मुझे जताना
सदा लूटाना प्यार यूँ ही तुम
कभी न मुझे सताना
सोलहश्रृंगार करूंगी मैं उस दिन
गर तुम्हारे दिए उपहार जो पहना
होगा सफल ये जीवन उस दिन
अनमोल लगेगा हर आभूषण सजेगा मुझपर उस दिन सबकुछ हर ज़ेवर और गहना।
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