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समझिए कृषि विधेयक को - निखिलेश मिश्रा

Saturday, September 19, 2020

/ by Dr Pradeep Dwivedi

निखिलेश मिश्रा ( लखनऊ)

हाल ही में लोकसभा में दो कृषि विधेयकों- ‘कृषि उपज वाणिज्य एवं व्यापार (संवर्द्धन एवं सुविधा) विधेयक, 2020’ और ‘मूल्य आश्वासन पर किसान (बंदोबस्ती और सुरक्षा) समझौता और कृषि सेवा विधेयक, 2020’ को बहुमत से पारित कर दिया गया है।

लोकसभा में आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक, 2020  [Essential Commodities (Amendment) Bill, 2020] को पहले ही पारित किया जा चुका है।

अब इन तीनों विधेयकों को राज्य सभा में प्रस्तुत किया जाएगा, राज्य सभा से पारित होने के बाद ये विधेयक  कानून बन जाएंगे।

ये विधेयक केंद्र सरकार द्वारा जून 2020 में कृषि क्षेत्र में सुधार हेतु घोषित अध्यादेशों को प्रतिस्थापित करेंगे।  

‘कृषि उपज वाणिज्य एवं व्यापार (संवर्द्धन एवं सुविधा) विधेयक, 2020’

[The Farmers' Produce Trade and Commerce (Promotion and Facilitation) Bill, 2020]: 


पृष्ठभूमि: 

वर्तमान में किसानों को अपनी उपज की की बिक्री में कई प्रकार की चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, किसानों के लिये अधिसूचित कृषि उत्पाद विपणन समिति (APMC) वाले बाज़ार क्षेत्र के बाहर कृषि उपज की बिक्री पर कई तरह के प्रतिबंध थे।

किसानों को केवल राज्य सरकारों के पंजीकृत लाइसेंसधारियों को उपज बेचने की बाध्यता भी निर्धारित थी साथ ही राज्य सरकारों द्वारा लागू विभिन्न APMC विधानों के कारण विभिन्न राज्यों के बीच कृषि उपज के मुक्त प्रवाह में भी बाधाएँ बनी हुई थी। 


लाभ:  

इस विधेयक के माध्यम से एक नए पारिस्थितिकी तंत्र की स्थापना में सहायता मिलेगी जहाँ किसानों और व्यापारियों को कृषि उपज की खरीद और बिक्री के लिये अधिक विकल्प उपलब्ध होंगे।

यह विधेयक राज्य कृषि उपज विपणन कानून के तहत अधिसूचित बाज़ारों के भौतिक परिसर के बाहर अवरोध मुक्त अंतर्राज्यीय और राज्यंतारिक व्यापार और वाणिज्य को बढ़ावा देता है।

इस विधेयक के माध्यम से अधिशेष उपज वाले क्षेत्र के किसानों को अपनी उपज पर बेहतर मूल्य प्राप्त होगा और साथ ही कम उपज वाले क्षेत्रों में उपभोक्ताओं को कम कीमत पर अनाज प्राप्त हो सकेगा।

इस विधेयक में कृषि क्षेत्र में  इलेक्ट्रॉनिक ट्रेडिंग का भी प्रस्ताव किया गया है।

इस अधिनियम के तहत किसानों से उनकी उपज की बिक्री पर कोई उपकर या लगान नहीं लिया जाएगा। साथ ही इसके तहत किसानों के लिये एक अलग विवाद समाधान तंत्र की स्थापना का प्रावधान भी किया गया है।

सरकार के अनुसार, यह विधेयक भारत में ‘एक देश, एक कृषि बाज़ार’ के निर्माण का मार्ग प्रशस्‍त करेगा। 

मूल्य आश्वासन पर किसान (बंदोबस्ती और सुरक्षा) समझौता और कृषि सेवा अध्यादेश, 2020

[The Farmers (Empowerment and Protection) Agreement of Price Assurance and Farm Services Bill, 2020]: 


पृष्ठभूमि: 

भारतीय किसानों को छोटी जोत, मौसम पर निर्भरता, उत्पादन और बाज़ार की अनिश्चितता के कारण कई प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इन कमज़ोरियों के कारण आर्थिक दृष्टि से कृषि में बहुत अधिक जोखिम होता है


विधेयक के लाभ:

यह विधेयक किसानों को बगैर किसी शोषण के भय के प्रसंस्करणकर्त्ताओं, थोक विक्रेताओं, बड़े खुदरा कारोबारियों, निर्यातकों आदि के साथ जुड़ने में सक्षम बनाएगा।

इसके माध्यम से किसान प्रत्यक्ष रूप से विपणन से जुड़ सकेंगे, जिससे मध्यस्थों की भूमिका समाप्त होगी और उन्हें अपनी फसल का बेहतर मूल्य प्राप्त हो सकेगा।

इस विधेयक से कृषि उपज को राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय बाज़ारों तक पहुँचाने हेतु आपूर्ति श्रृंखला के निर्माण तथा कृषि अवसंरचना के विकास हेतु निजी क्षेत्र के निवेश को बढ़ावा मिलेगा।

इसके माध्यम से किसानों की आधुनिक तकनीक और बेहतर इनपुट्स (Inputs) तक पहुँच भी सुनिश्चित होगी। 


विरोध: 

केंद्र सरकार द्वारा जून 2020 में कृषि संबंधी अध्यादेशों के जारी करने के बाद से ही पंजाब और हरियाणा में किसानों द्वारा इसका विरोध देखने को मिला है। 

इसके विरोध में ‘शिरोमणि अकाली दल’ से जुड़ी केंद्रीय खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्री हरसिमरन कौर बादल ने सरकार से अपना इस्तीफा दे दिया। 


विरोध का कारण: 

हालाँकि ज्यादातर किसान तीनों विधेयकों का विरोध कर रहे हैं परंतु उनकी सबसे बड़ी आपत्ति ‘कृषि उपज वाणिज्य एवं व्यापार (संवर्द्धन एवं सुविधा) विधेयक’ के"व्यापार क्षेत्र", "व्यापारी", "विवाद समाधान" और "बाज़ार शुल्क" से संबंधित प्रावधानों से है।


1. व्यापार क्षेत्र:  

इस विधेयक की धारा 2(m) के अनुसार, व्यापार क्षेत्र की परिभाषा-  ‘कोई भी क्षेत्र या स्थान, उत्पादन, संग्रह और एकत्रीकरण का स्थान (जिसमें फार्म गेट, कारखाना परिसर, कोष्‍ठागार (Silos),  गोदाम,  कोल्ड स्टोरेज या कोई अन्य संरचना या स्थान शामिल है), जहाँ से किसानों की उपज का व्यापार भारत के क्षेत्र में किया जा सकता है।’ 

हालाँकि इस परिभाषा में प्रत्येक राज्य एपीएमसी अधिनियम (APMC Act) के तहत गठित बाज़ार समितियों द्वारा संचालित और प्रबंधित परिसर, बाड़ों तथा संरचनाओं जैसे- प्रमुख बाज़ार यार्ड, उप-बाज़ार यार्ड, मार्केट सब-यार्ड एवं लाइसेंस धारक व्यक्तियों द्वारा प्रबंधित निजी किसान-उपभोक्ता बाज़ार यार्ड को शामिल नहीं किया गया है।

जिसका अर्थ है कि एपीएमसी अधिनियम के तहत स्थापित मौजूदा मंडियों को नए कानून के तहत व्यापार क्षेत्र की परिभाषा से बाहर रखा गया है।

विरोधकर्त्ताओं के अनुसार, यह प्रावधान एपीएमसी मंडियों को उनकी भौतिक सीमाओं तक सीमित कर देगा और इससे बड़े कॉर्पोरेट खरीदारों को बढ़ावा मिलेगा।

गौरतलब है कि वर्ष 2006 में बिहार राज्य में APMC प्रणाली को समाप्त कर दिया गया था, जिससे कृषि उपज के कारोबार में निजी क्षेत्र की भागीदारी बढ़ी है और किसानों को भारी क्षति हुई है। 


2. व्यापारी: 

केंद्रीय कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय के अनुसार, पैन कार्ड धारक व्यापारी, निर्धारित व्यापार क्षेत्र में किसानों की उपज खरीद सकता है। 

विधेयक के अनुसार, एक व्यापारी एपीएमसी मंडी और व्यापार क्षेत्र दोनों में काम कर सकता है। हालांकि, मंडी में व्यापार के लिये, व्यापारी को राज्य एपीएमसी अधिनियम के तहत लाइसेंस/पंजीकरण की आवश्यकता होगी। वर्तमान मंडी प्रणाली में, आढ़तियों (कमीशन एजेंटों) को मंडी में व्यापार करने का लाइसेंस प्राप्त करना होता है।

विरोधकर्त्ताओं के अनुसार, आढ़तियों की विश्वसनीयता अधिक है क्योंकि लाइसेंस की मंज़ूरी प्रक्रिया के दौरान वित्तीय स्थिति सत्यापित होती है, परंतु नए कानून के तहत किसानो के लिये  एक व्यापारी पर विश्वास करना कठिन होगा।

कृषि विशेषज्ञों के अनुसार, पंजाब और हरियाणा में आढ़तिया प्रणाली अधिक प्रभावशाली है, अतः इन राज्यों में अधिक विरोध देखने को मिला है।


3. बाज़ार शुल्क: 

इस विधेयक की धारा-6 के तहत व्यापार क्षेत्र के अंदर किसी भी राज्य एपीएमसी अधिनियम या अन्य राज्य कानून के अंतर्गत किसान या व्यापारी पर कोई भी ‘बाज़ार शुल्क या उपकर या लेवी’ लागू करने की अनुमति नहीं है।

इस प्रावधान से राज्य सरकार की आय में कमी आएगी और निजी क्षेत्र को लाभ होगा।

उदाहरण के लिये: वर्तमान में, पंजाब में एपीएमसी में कर/कमीशन दर 8.5 प्रतिशत है, वर्ष 2019-20 में, पंजाब ने व्यापार शुल्क से राजस्व के रूप में 3,600 करोड़ रुपए एकत्र किये थे।

 कृषि उपज की बिक्री से कर या शुल्क के रूप में उत्पन्न राजस्व का उपयोग राज्य सरकार द्वारा ग्रामीण सड़कों और राज्य मंडियों के साथ संपर्क विकसित करने के लिये किया जाता है। 


4. विवाद निवारण तंत्र:   

इस विधेयक की धारा-8 के अनुसार, किसान और व्यापारी के बीच लेन-देन से उत्पन्न विवाद के मामले में वे सब-डिविज़नल मजिस्ट्रेट (SDM) को एक आवेदन दाखिल करके सुलह कर सकते हैं।

विरोधकर्त्ताओं के अनुसार, यह अध्यादेश विवाद के मामलों में किसानों को दीवानी अदालत में जाने की अनुमति नहीं देता और उन्हें भय है कि सुलह की प्रस्तावित प्रणाली का उनके खिलाफ  दुरुपयोग किया जा सकता है। 


सरकार का पक्ष:  

सरकार के अनुसार कृषि क्षेत्र में निजी क्षेत्र के निवेश के माध्यम से तथा विधेयक में प्रस्तावित अन्य सुधारों से कृषि क्षेत्र में बड़े सकारात्मक बदलाव देखने को मिलेंगे।

सरकार के अनुसार, इन सुधारों के बाद भी किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) प्राप्त होता रहेगा और राज्य कानूनों के तहत स्थापित मंडियों में भी कोई परिवर्तन नहीं किया जाएगा।


आगे की राह:

कृषि क्षेत्र में निजी क्षेत्र को बढ़ावा दिये जाने के साथ APMC की पहुँच में विस्तार हेतु आवश्यक सुधार किये जाने चाहिये।

सरकार द्वारा ‘ई-नाम’ (e-NAM) जैसे नवीन प्रयासों के माध्यम से कृषि क्षेत्र में ई-ट्रेडिंग (e-Trading) को बढ़ावा दिया जाना चाहिये।

कृषि उपज पर MSP के संदर्भ में स्वामीनाथन समिति (Swaminathan Committee) की सिफारिशों को लागू करने का प्रयास किया जाना चाहिये।


(स्रोत: पीआईबी/दृष्टि आईएएस)

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