पूनम हिम्मत अद्वितीय
माता-पिता ने देह दिया यह ,
इससे बड़ा वर क्या होगा ।
अपने रक्त से सिंचा हमको ,
इससे बड़ा ऋण क्या होगा ।
अपना सारा जीवन दे डाला
अब और समर्पण क्या होगा ।
जब तक हैं वे नित करो सेवा ,
मृत्यु पे तर्पण क्या होगा ।
तरस रहे जो कण कण को ,
उन्हें बाद में अर्पण क्या होगा ,
गला सूखता बूंद न जल की ,
बाद में घट का क्या होगा ।
जब वस्त्र नहीं है अभी देह में ,
बाद में मलमल क्या होगा ।
अभी कोसते रहते प्रतिपल ,
बाद का प्रतिफल क्या होगा ।
कर दो अर्पण सब इस लोक में ,
बाद का तर्पण क्या होगा।