- शैलेंद्र श्रीवास्तव ( प्रसिद्ध अभिनेता व लेखक)
माँ-बाप
कभी मरते नहीं
जीवित रहते हैं ...
पूरी चैतन्यता के साथ
हमारे भीतर, मस्तिष्क, मन, प्राण में
उनका मृत होना भ्रम है,
मिथ्या है... मिथ्या है... मिथ्या है...!
भ्रम है, दृष्टि का, विचारों का
वो बस पंच तत्वों में विलीन हो जाते हैं|
भूमि, जल, अग्नि, व्योम, वायु में
समा जाते हैं...
और उनकी संताने
वरदान पा जातीं हैं,
विस्तार पा जातीं हैं, जीवन का...
पंच तत्वों का...
बिना पंचतत्व, क्या जीवन सम्भव है...?
नहीं, कदापि नहीं... असम्भव है।
माँ-बाप
पूर्णतः समाहित हो जाते हैं,
हमारी रग-रग में,
मन प्राण में, विचारों में|
लहू बनकर
धमनियों में बहते हैं...
उनकी मृत्यु
मिथ्या है... मिथ्या है... मिथ्या है...!
मरता है एक जीर्ण, रुग्ण शरीर
क्यूँकि आत्मा तो अजर है, अमर है...
परमात्मा में विलीन हो जाती है
आत्मांश छोड़ जाती है
हमारे नश्वर शरीर में
यह क्रम निरंतर
पीढ़ी दर पीढ़ी चलता रहता है
युगों-युगों तक...
यही सत्य है, शेष...
मिथ्या है... मिथ्या है... मिथ्या है...!
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