सोनल उमाकांत बादल
फ़रीदाबाद
मातृभूमि के मस्तक पर श्रृंगार करती इक बिंदी भारतीय संस्कृति की धरोहर है मातृ भाषा हमारी हिन्दी,
मातृभूमि के मस्तक पर सजकर बनाती भारत को महान है
रस बनकर बहती होंठो पर
मातृ भाषा इसकी पहचान है
हिंदी हैं हम के जयकारों से
गूँजता सारा आसमान है
शब्द हैं मीठे तीर से वाणी
जिसकी कमान है
है गर्व मुझे इस भाषा पर
हिंदी से हिंदुस्तान है.........
आसानी से इसको हमसब धारा प्रवाह बोल पाते हैं
मिश्री सी मिठास बनकर
वाणी मेँ घोल पाते हैं
आदर सम्मान व्यवहार कुशलता
से अपनी पहचान बनाते हैं
कविता कहानी गज़ल गीत और काव्य पाठ कर पाते हैं
शब्दों की माला मेँ पिरोकर
भाव व्यक्त कर पाते हैं
शब्द ही कम पड़ जाएंगे चाहे
करलो कितना ही गुणगान
रस बनकर बहती होंठों पर
मातृ भाषा इसकी पहचान है
भारतीय संस्कृति की धरोहर है
हिंदी से हिंदुस्तान है.........
जीवित है स्वरूप सुन्दर इसका
हिंदी साहित्य का इतिहास लिए
एक सूत्र मेँ राष्ट्र को बांधे हिन्दीभाषी इक तार पिरोये
बहती नदी की धारा बनकर दरिया सागर सा विस्तार किये
हिंदी जगत के रचनाकार
कितने ही न जाने विद्वान् दिए
निराला' दिनकर जैसे साहित्यकार
इस जगत को महान दिए
हिंदी भाषा को किया समर्पित
कितनों ने ही जीवन दान
सुन्दरता से सुसज्जित करके किया हिंदी का व्याख्यान है
हैं गर्व मुझे इस भाषा पर
जो शब्दों से भरी इक खान है
सारे जहाँ से अच्छा कहलाता जिससे ये भारत महान है
भारतीय संस्कृति की धरोहर है
हिंदी से हिंदुस्तान है!