रचना शास्त्री
अब न यूं आवाज दो मुझे
मैं सुख के अपने स्वप्निल
संसार में हूँ.......।
ऐ!प्यार मैं तेरे प्यार में हूँ....।
दुख नहीं कुछ भी मुझे
पर सुख के इंतजार में हूँ।
ऐ!प्यार मैं तेरे प्यार में हूँ।
श्वॉस आती है श्वॉस जाती है
बीच में जीवन ठहरा है।
भीतर विषयों का पर्दा है,
बाहर वासनाओं का पहरा है।
मन जिसे तुम कह रहे हो
वो कूप पाताल से भी गहरा है।
मन से मन के अभिसार में हूँ।
ऐ!प्यार मैं तेरे प्यार में हूँ
साँझ की यवनिका गिरती
रात दुल्हन सी उतरती।
एक चाँद द्वार पे दस्तक देता
तारकों की सेज सँवरती
ओस में धुलते दो बदन
साँसों से मलय बयार झरती
भाव के दिव्य संसार में हूँ
ऐ!प्यार मैं तेरे प्यार में हूँ
चीरकर उर पाषाण का
बीज एक नेह का वसुधा बोती
एक मधुकर के हित
कलिका भार यौवन का ढोती ।
एक सूरज अधरों को चूमता जब
तब भोर सुहागन होती
प्रणय पावन रसधार में हूँ
ऐ!प्यार मैं तेरे प्यार में हूँ।
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