लेखिका- शगुफ्ता सैफी
डासना (ग़ाज़ियाबाद) उत्तर प्रदेश
एक बचपन था मेरा।
क्या बचपन था वो मेरा...
क्या खूब बचपन था वो मेरा...
जब बचपन था तो सिर्फ खेलना-कूदना
था मेरी ज़िन्दगी...
ना खाने की फ़िक्र
ना पढ़ने की चिंता
ना कुछ करने की ना कुछ बनने की फ़िक्र थी,
बस खेल-कूद था जीवन का मकसद।
एक बचपन था मेरा।
क्या बचपन था वो मेरा....
अब ना वो खेल-कूद है ना ही वो मस्तियाँ...
सबसे खूबसूरत था वो मेरा बचपन।
ना ज़िम्मेदारियाँ थी ना किसी बात की फ़िक्र ।
ऐसा था वो मेरा बचपन।
मिट्टी में खेलना, गुड्डो गुडियो से खेलना, दोस्त, परिवार,आस-पास के लोग...सभी के साथ खेलना...
ऐसा था वो मेरा बचपन।
चोट भी लग जाये तो दर्द कब हस्ते-खेलते
चला जाता था पता ही नहीं चलता था।
ऐसा था वो मेरा बचपन।
जब बचपन था तो अनजान थी सब रंग-रूपों
से,कुछ अगर पता था तो बस खिले-खिले फूलो के रंग।
जब बचपन था तो मेरे पास कुछ खास नहीं था।
फिर भी सब कुछ खास था।
ऐसा था वो मेरा बचपन।
क्या खूब था वो मेरा बचपन।
जब बचपन था तो किसी हार पर भी कोई गम ना था बस ख़ुशी थी...
ऐसा था वो मेरा बचपन।
क्या खूब था वो मेरा बचपन।
बस अब तो मेरे एहसासों में ही रह गया है,
वो मेरा बचपन।
बचपन वो मेरा बचपन।
बचपन वो सबका बचपन...
क्या खूब होता है बचपन।
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