संलग्न चित्र क्रमशः हाजी मस्तान, छोटा शकील, अनीस इब्राहिम, दाऊद इब्राहिम के हैं।
निखिलेश मिश्रा, लखनऊ
मुम्बई में अंडरवर्ल्ड की शुरुआत होती है 1960 से और ये शुरुआत करता है हाजी मस्तान। 1980 तक वह इतना धनी हो चुका था कि वह अपनी फिल्में फाइनेंस करने लगा था। यहां से माफियाओं की बॉलीवुड में एंट्री हो चुकी थी। हाजी मस्तान का वहां के मुलिम्स वोट बैंक में अच्छी पकड थी। इसने अपनी पोलिटिकल पार्टी बनाई थी। आज आप जिस "जय भीम जय मीम" सुनते है वह हाजी मस्तान का ही दिया हुआ विचार था। इतनी कट्टर विचार धारा का आदमी जब फिल्मों में पैसा लगाएगा तो स्क्रिप्ट में उसका असर अवश्य दिखेगा।
ये तो सिर्फ शुरुआत थी। छोटा शकील के साथ अनगिनत डायरेक्टर्स प्रोड्यूसर्स के साथ फोन टैपिंग पकड़ी गई हैं। अबू सलेम ने खुद कहा था कि उसने देवदास फ़िल्म में पैसा लगाया हुआ था। चोरी चोरी चुपके चुपके पर तो अच्छा खासा हंगामा हुआ और बड़ा केस ही चला था।
मामला यही नही रुका बल्कि 1980 में दाऊद की डी कम्पनी बनती है। तब अधिकांशतः दाऊद की डी कम्पनी ही 2001 तक फ़िल्म पर पैसा लगाती थी। इसकारण वह फ़िल्म की स्क्रिप्ट से लेकर कंटेंट और कास्टिंग तक पूरा नियंत्रण रखती थी। इसतरह दाऊद ने बॉलीवुड के प्रोडक्शन पर तो अपना आधिपत्य जमा लिया लेकिन गल्फ देश जैसे पाकिस्तान के अंदर अल मंसूर नाम की कम्पनी खोली गई। यह कम्पनी बॉलीवुड की हर फिल्म का डिस्ट्रीब्यूशन देखती थी। ये कम्पनी दाऊद के भाई अनीस इब्राहिम की कम्पनी थी और इसकी मोनोपोली थी जिसकारण यह बॉलीवुड का आवश्यक भाग बन गयी।
इसके बाद दाऊद के भाई ने पाकिस्तानी कम्पनी सदफ का नियंत्रण अपने हाथों में ले लिया और 46 देशों में पाइरेटेड सीडी, डीवीडी बेंचना शुरू कर दिया। अर्थात शुरुआत में प्रोडक्शन फिर डिस्ट्रीब्यूशन और फिर अंत मे पाइरेसी के अंदर भी दाउद की डी कम्पनी का कब्जा हो गया। इस तरह फ़िल्म की कास्टिंग से लेकर कंटेंट तक डी कम्पनी बॉलीवुड को चलाने लगी।
दाऊद चूंकि खुद ही एक जेहादी आतंकवादी है और बॉलीवुड पर उसका नियंत्रण है, ऐसे में बॉलीवुड से लव जेहाद वाली फिल्में ही तो निकलेंगी। हालांकि अब कई अन्य लोग भी पैसा लगा रहे है किंतु लम्बे अरसे से चली आ रही परिपाटी ने आज भी अंदर तक अपनी पैठ बनाई हुई है। यही कारण है कि साउथ की मूवी कॉपी करने के बावजूद बॉलीवुड में उस फ़िल्म की स्क्रिप्ट चेंज कर दी जाती है। इसके अतिरिक्त शेष खेल टीआरपी का है।
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