आयुष मिश्रा, दिल्ली
पिछले कई वर्षों से देखा जा रहा है कि पारा गिरने के साथ दिल्ली- एनसीआर और उसके निकटवर्ती क्षेत्रों में प्रदूषण का स्तर बढ़ता जा रहा है। भयवाह प्रदूषण के कारक और स्तर को रोकने के लिए केंद्र सरकार द्वारा गठित नई संस्था वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग के परीक्षा के दिन शुरू हो गए हैं , प्रदूषण के स्तर और आंकड़े जुटाने वाली संस्था 'सफर' के मुताबिक पराली यानी फसल के बचे अवशेष ही मात्र प्रदूषण के कारण नहीं है पराली से होने वाले प्रदूषण दिल्ली के दमघोटू प्रदूषण का मात्र 18 से 20 प्रतिशत है लगभग 80 प्रतिशत प्रदूषण दिल्ली के स्थानीय कारणों और दिल्ली सरकार की लापरवाही से होता है। यह बात भी सही है की पराली से उत्पन्न धुआ हवा में प्रदूषक कण को हवा के कण से बांधने में सहायक होता है जिससे नवंबर से जनवरी तक की स्थिति भयवाह हो जाती है।
हरियाणा और पंजाब में पराली का ठीक तरह से निष्पादन की व्यवस्था ना होने के कारण किसान पराली जलाने पर मजबूर है जिसका नतीजा दिल्ली में काले अंधेरे के रूप में दिखता है दिल्ली का भयंकर प्रदूषण स्तर फुफुस , दिल सहित कई बीमारियों का कारण है। पराली से ना केवल मनुष्य के सेहत पर विकट असर पड़ रहा है बल्कि खेत में मौजूद उर्वरक क्षमता को भी पराली जलाने की प्रक्रिया खत्म कर रही है , मिट्टी में मौजूद नाइट्रोजन, फास्फोरस, सल्फर आदि पौधे के लिए जरूरी पोषक तत्व को पराली ने खत्म कर किसानों की निर्भरता रासायनिक खादों पर और बढ़ा दी है । पराली जलाने से निकलने वाली जहरीली गैस वायुमंडल को दुगनी मार दे रही है जिससे धरती का तापमान भी प्रभावित होने लगा है।
दिल्ली के प्रदूषण स्तर को देखते हुए राष्ट्रीय हरित अधिकरण अर्थात एनजीटी ने दिल्ली एनसीआर में पटाखों की बिक्री पर रोक लगा दी है। दिल्ली सहित पंजाब हरियाणा की लचर सरकारों की वजह से वह दिन दूर नहीं जब दिल्ली एनसीआर में रहने वाले लोग पीठ पर ऑक्सीजन सिलेंडर बांधे सांस लेते नजर आएंगे। कोरोना के साथ इस साल की स्थिति और दयनीय हो गई है , कोरोना मरीजों के साथ सांस संबंधित मरीजों की संख्या दिल्ली और आसपास के इलाकों में बढ़ने लगी है , ऐसे में मानव जीवन की रक्षा के लिए इस साल संकल्प लेकर पटाखों का त्याग करें जिससे दिल्ली वासियों के अस्पताल ना जाने की उम्मीद जिंदा रह सके । यह निंदनीय है कि केंद्र सरकार सुप्रीम कोर्ट और राज्य सरकारों की सक्रियता के बावजूद पराली इस वर्ष पिछले वर्षों के मुकाबले अधिक जलाई गई। हाथ से धान की कटाई के दिनों में प्रदूषण की इतनी भयंकर समस्या कभी नहीं हुई, मशीनीकरण और फसल काटने वाले मजदूर ना मिलने की समस्या ने दिल्ली और नजदीक के इलाकों को गैस चैंबर में तब्दील कर दिया है। यह स्थिति देश की राजधानी में वर्ष दर वर्ष अत्याधिक भयंकर होती जा रही है , कब सरकारों की नींद टूटती है अब समस्या का सामना कर रहे नागरिकों को बस इसी का इंतजार है।