सीमा तोमर, गाज़ियाबाद
आना कभी चोखट पर मेरी ,हर ख़ुशी अधूरी मिलेगी
कभी समाज के तो कभी लोक लाज क़े नाम पर ,औरत की 'सिर्फ' और 'सिर्फ' मजबूरी मिलेगी
आना कभी चौखट पर मेरी .......अधूरी मिलेगी
कभी तो जी नहीं पाई मुकम्मल में 'अपने आप 'को ,हमेशा मुझे मेरे वजूद की दूरी मिलेगी
आना जरा कभी चौखट ....... अधुरी मिलेगी
जीती आयी हमेशा दूसरो के लिए , सोचोगे बस तो अपने आप के लिए बस 'खानापूरी' मिलेगी
आना कभी चौखट ........... अधूरी मिलेगी
लोग क्या कहेंगे ?ये जमाना क्या कहेगा ? बस मन को यही बात जरूरी लगेगी
आना कभी चौखट .......... अधूरी मिलेगी
कभी देखा भी तो नहीं खुद को अपनी नज़र से
औरो को कैसी लगरही हूँ बस यही बात जरूरी लगेगी
आना जरा कभी ................ अधूरी लगेगी
बेटी हूँ ,बहन हूँ , पत्नी हूँ बस यही बन कर रह गयी ...... आखिर कब मुझे "में " की "परिभाषा " पूरी मिलेगी
आना कभी चौखट ...... अधूरी मिलेगी
ढूढ़ रही हूँ अब तक अपने आप को
न जाने कब मेरी ये तलाश पूरी बनेगी ?????
आना जरा कभी चौखट पर मेरी हर ख़ुशी अधूरी मिलेगी
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