पूजा खत्री, लखनऊ |
अतीत के झरोखें में छुपे
वो कुछ गुमनाम लोग,
कभी ज़ख़्म तो कभी दिलशाद हुए
वो कुछ गुमनाम लोग..
किरायेदार हुए जो दिल के मकाँ मे
वो कुछ गुमनाम लोग,
दे गये कुछ दर्दे-निशां,अजब थे
वो कुछ गुमनाम लोग...
आती-जाती सांसों में फेरा लगाते
वो कुछ गुमनाम लोग,
जल जाएंगे मेरे साथ ही कुछ नाम के
वो कुछ गुमनाम लोग...
रहते थे जो परझाई बन के मेरे साथ
वो कुछ गुमनाम लोग,
जुबां पे नहीं साथ पर खास का अहसास
कराते वो कुछ गुमनाम लोग ....