सोनल उमाकांत बादल
फ़रीदाबाद
जो भरते हैं पेट सभी का उनकी भी
भूख़ का निदान होना चाहिए
ये अनुरोध है मेरा आप सभी से
अन्नदाता का धरा पर मान होना चाहिए
कहानी एक किसान की बयां करती हूँ मैं तुमको
के इक उम्मीद ले निकला था फ़सल उगाने की
खेत में हरियाली लाने की जल्दी जी जिनको
करो भगवान का शुक्रिया दिया सबकुछ जिसने तुमको
ज़रा पूछों उनके दिलसे के इक रोटी भी नहीं जिनको
नंगे पैरों जोतकर खेत पड़गए पांओ में छाले हैं
चटखती धूप में जिनके पड़गए चेहरे काले हैं
वो निकलता है भूखा घरसे भगाते जिनको हो दर से
उनका भी अपना तो कोई सम्मान होना चाहिए
ये मेरा अनुरोध है आप सभी से के
अन्नदाता का धरा पर मान होना चाहिए!
नस्ट होजाती है फ़सल उनकी मूसलाधार पानी जब बरसे
सरकती पांओ तले की ज़मीन छिन जाती है छत भी सरसे
जो दुनिया का है पेट भरता वो पाई पाई को तरसे
तोड़ देता है अंत में दम क़र्ज़ का ब्याज़ भरते - भरते
कोई खा लेता है ज़हर तो कोई तो फांसी पर झूले
खाकर ब्याज़ किसानों का कैसे सरकारें फलें फूलें
पैदा ही अन्न नहीं जो होगा फांकोगे क्या दो जून धूलें
किसी किसान की मेहनत कभी भी हम नहीं भूलें
चाहती हूँ मैं के किसान का माफ़ लगान होना चाहिए
ये अनुरोध है मेरा आप सभी से के
अन्नदाता का धरा पर मान होना चाहिए!
कितने भी संकट आएं पर फ़सल उगाने तत्पर अड़ता
धूप जलाक अांधी तूफ़ांन किसी का उसे न फर्क पड़ता
खेतोँ की करने रखवाली रात दिन उसका शरीर गलता
भूखे पेट भी खेतोँ मैं उसके लगातार है हल चलता
कठिन परिश्रम करने पर उसे फ़सल का फल मिलता
देख हरियाली खेतोँ की ख़ुशी से चेहरा है ख़िलता
लहलहाती हो फ़सल किसानों की के इतना धान हो
गूंज उठे जयकारों से मेरा किसान महान हो
जो भरते हैँ पेट सबका उनकी भी भूख़ का निदान हो
ये अनुरोध है मेरा आप सभी से के
अन्नदाता का धरा पर मान हो
अन्नदाता का धरा पर मान हो!
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