अनुपमा पांडेय "भारतीय ( गाजियाबाद )
तरु की ऊंची फुनगी पर,
चिनगी- सा खिल उठा पलाश,
तेरे आवन का संदेश जैसे,
महक उठा मन का आकाश।
प्रमुदित है, भू - अंबर ,
स्नेह शिक्त, अभी शीक्त मधुमास,
लिए अधरों पर अंगार ,
सुलग रहा ,सिंदूरी पलाश।
कंचन काया झुलस रही,
प्रेम अगन में यौवन,
तरुनाई सी इठलाई,
चंचल क्यों है चितवन?।
विरहन मन में चिनगी-सी ,
कैसी ये हूक कौंध गई,
अलकावली बीच उभरी छवि,
पलकन गीली कर गई।
सिंदूरी नभ घन क्यों कर,
रह रह मन भरमाए,
खिले फूल पलाश के,
पर,अब भी तुम न आए...
अब भी तुम न आए।
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