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वंदना गुप्ता, लखनऊ |
अतिशबाज़ी जहान में सारे
फिर दिल में क्यू सन्नाटा है,
दुनियां की इस भीड़ भाड़ में
एक दिल भी अपना न हो पाता है,
फलक पे लाखो तारे है पर चांद तन्हाई में कहीं खो जाता है,
खुद को खुश रखना कितना मुश्किल है अब,
बस जब कहने को ही तेरा मेरा नाता है,
मीरा बनकर रह गई तेरे प्यार में ,तेरे साथ अब दो पल रुकमणी बनने को जी चाहता है।।।
You are fabulous writer... Keep it up
ReplyDeleteVakai me aap ek behtreen writer h!!!
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