मुरारी यदुनाथ सिंह, लखनऊ
खुद को खुद से रूठा पाया, जाने कैसा मौसम है।
कुछ अपना कुछ लगे पराया, जाने कैसा मौसम है॥
है अनबन अपने ही मन से , कैसे देखूँ अंतर्मन,
कोहरा घना बहुत है छाया, जाने कैसा मौसम है।
यादों की गरमाहट है जलते हुए अलाव में,
अहसासों ने खूब रुलाया, जाने कैसा मौसम है।
टप-टप कर आँसू हैं टपके , पत्ता-पत्ता रोया है,
कोई खत पुराना हमने पाया, जाने कैसा मौसम है।
बहुतेरे सितम-ए-गम, सहर-ओ-शाम हमारे साथ,
दर्द उतर आँखों में आया, जाने कैसा मौसम है।
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