पुष्पा कुमारी "पुष्प"
पुणे (महाराष्ट्र)
"तुम कमरे पर ही आ जाते! इतनी ठंड में हमें यहां मिलने की क्या जरूरत थी?"ओस की बूंदों से भिगोती उस सर्द रात में उसने अपनी जेब से हाथ निकाल दोस्त के कंधे पर रख दिया।
वह अपने साइट पर से सीधा उस निर्माणाधीन इमारत तक आया था जहां पहली बार काम के दौरान उन दोनों की दोस्ती शुरू हुई थी वहां वह इलेक्ट्रीशियन था और उसका दोस्त प्लंबर।
"वहां और लोग होते ना इसलिए!"
"ऐसी कौन सी बात है जो तुम दो लोगों के सामने मुझसे नहीं कर सकते?"
"असल में मुझे कुछ रुपए उधार चाहिए थे! अगर ब्याज पर मिले तब भी चलेंगे।"
"क्यों? क्या हो गया?"
"वह जो मेरा गांव वाला दोस्त यहाँ मेरे साथ हेल्पर का काम करता था ना! उसकी पत्नी की डिलीवरी है और उसका गाँव जाना बहुत जरूरी है।"
"उसके घर में कोई और नहीं है क्या?"
"उसकी बूढ़ी मां और पत्नी के अलावा कोई और नहीं है।"
"मतलब वह काम छोड़कर यहां से जा रहा है?"
"अभी तो जा रहा है लेकिन बाद में वह आएगा जरूर।"
"अच्छा! लेकिन उसके लिए तुम क्यों परेशान हो?"
"असल में वह बीच में ही काम छोड़ कर जा रहा है इसलिए मालिक उसे इस महीने की पगार नहीं दे रहे हैं, मुझे भी अभी पगार नहीं मिला है।"
"उसका टिकट हो गया है क्या?" उसने दोस्त से जानना चाहा।
"हां। टिकट के लिए रुपया था उसके पास। लेकिन आज मैं उसे यहां से खाली हाथ गाँव नहीं जाने देना चाहता,आखिर घर वाले भी तो उससे कुछ उम्मीद कर रहे होंगे और किसी की उम्मीद नहीं टूटनी चाहिए।" उसका दोस्त तनिक भावुक हो गया।
"लेकिन मेरे पास तो फिलहाल मात्र दो हजार रूपए ही हैं!"
उसने जेब से अपना बटुआ निकाल चेक किया लेकिन दोस्त को अपनी ओर उम्मीद से देखता पाकर वह बोला
"तुम उसे लेकर स्टेशन पर पहुंचो, हम कमरे पर से होकर तुम्हें स्टेशन पर मिलते हैं। कम से कम दस हजार रूपए उसके हाथ में देकर ही गाँव भेजेंगे।"
वह जानता था कि कमरे पर उसने कोई रुपए नहीं रखे हैं फिर भी कमरे पर मौजूद दोस्तों की दोस्ती के बल पर एक आत्मविश्वास के साथ उसने अपने इस दोस्त से पक्का वादा कर गया और उसके दोस्त की आंखों में उम्मीद के संग मोती सा कुछ चमक गया
"मुझे विश्वास था! तुम पक्का दोस्त हो।"
अपनी रूंधती आवाज को संभाल उसे गले लगा उस ठंडी रात में उसका दोस्त उसे उनके बीच की दोस्ती के रिश्ते की जबरदस्त गर्माहट महसूस करा गया।